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________________ ( ३६ ) परतन्त्र परिणति का नाम भावबन्ध है । शमदमाश्रित आल्मोपयोग का नाम भावसम्बर और उसके निमित्त से आगामी के लिये पुद्गल परमाणुवों के कर्मत्व रूप परिणमन मे ह्रास आजाने का नाम द्रव्य सम्बर है । क्रमशः आत्मीक शक्ति के विकाश का नाम भावनिर्जरा और भूतपूर्व कर्मोकी कर्मत्वशक्ति में हास होते चले जाने का नाम द्रव्य निर्जरा है । आत्मा की पूर्ण स्वतन्त्रता का नाम भावमोक्ष और उसके कार्मण स्कन्ध का पूर्णरूपेण अकर्मण्यता पर पहुंच जाना सो द्रन्यमक्ष कहलाता है । अस्तु । यहां पर प्रसगवश आल्मा और कर्मको ही बार बार दोहराया गया है सो आत्मा वा चेतनायुक्त जीव द्रव्य को कहते हैं जैसा कि पहले पता ही आये हैं वे आत्मायें संख्या में अनन्त होकर भी एक प्रकार से तीन भागों में विभक्त होकसती हैं बहिरामा, अन्तरात्मा और परमात्मा जो कि शरीर को ही पाल्मा समझ रहा हो-श्रात्मा के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ हो वह जीव तो वहिरात्मा होता है । जो आल्मा के सच्चे स्वरूप को जानता हो,शरीर में होकर भी शरीर से अपने आप को भिन्न मानता हो, फिर भी शरीर से सम्पर्क लिये हुये हो वह अन्तरात्मा होता है। परन्तु जो निरीहता पूर्वक शरीर से पृथक् होकर अशरीरी वनचुका हो वह परमात्मा कहलाता है। कर्म का विवेचनआमतोर से उत्क्षेपण अवक्षेपण वगेरह परिस्यन्दात्मक क्रिया को कर्म कहा जाता है जो कि निरे अचेतन पदार्थ में भी
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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