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________________ :२५: क्षमापन सूत्र ( ३४१ ) धर्म में स्थिर वृद्धि होकर मै सद्भावपूर्वक सब जीवो के पास अपने अपरावो की क्षमा मांगता हूँ और उनके सब अपराधो को में भी सद्भावपूर्वक क्षमा करता है। (३४२ ) में नतमस्तक होकर भगवत श्रमणसंघ के पास अपने अपराधो की क्षमा मांगता है और उनको भी मै क्षमा करता हूँ। (३४३ ) प्राचार्य, उपाध्याय, गिप्यगण और सामिक बन्युप्रो तथा कुल और गण के प्रति मने जो क्रोवादियुक्त व्यवहार किया हो उसके लिए मन, वचन और काय मे क्षमा मांगता हूँ। (३४४ ) में समस्त जीवो से क्षमा मांगता हूँ और सब जीव मुझे भी क्षमा दान दें। सर्व जीवो के साय मेरी मैत्रीवृत्ति है। किसी के भी साय मेरा वैर नही है। (३४५ ) मैने जो जो पाप मन से-सकल्पित किये है, वाणी से वाले है और गरीर से किये है, वे मेरे सब पाप मिथ्या हो जायें।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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