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मोक्षमार्ग-सूत्र
(३१०) जव पुण्य, पाप, बन्धन और मोक्ष को जान लेता है, तब देवता और मनुष्यसम्बन्धी समस्त काम-भोगो को जान लेता है अर्थात् उनसे विरक्त हो जाता है।
(३११) जव देवता और मनुष्यसम्बन्धी समस्त काम-भोगो से विरक्त हो जाता है, तब अन्दर और बाहर के सभी सासारिक सम्बन्धो को छोड़ देता है।
( ३१२) जव अन्दर और बाहर के समस्त सासारिक सम्बन्धो को छोड देता है, तब मुण्डित (दीक्षित) होकर पूर्णतया अनागार वृत्ति (मुनिचर्या) को प्राप्त करता है।
जब मुण्डित होकर अनागार वृत्ति को प्राप्त करता है, तब उत्कृष्ट संवर एव अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है।
(३१४ ) जब उत्कृष्ट सवर एवं अनुत्तर धर्म का सर्य करता है, तव (अन्तरात्मा पर से) अज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल को झाड़ देता