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मोक्खमग्ग-सुत्तं
( ३०१)
कहं चरे? कह चिट्ठ ? कहमासे ? कहं सए? कहं भुंजन्तो भासन्तो पावं कम्मं न बन्धइ ? ॥१॥
( ३०२)
जयं घरे जयं चिट्टे, जयमासे जयं सए। जयं भुंजन्तो भासन्तो पावं कम्मं न बन्धइ ॥२॥
( ३०३ )
सव्वभूयप्पभूयस्स सम्मं भूयाई पासो । पिहियासवस्त दन्तस्स पावं कम्मं न बन्धह ॥३॥
( ३०४ )
पढम नाणं तमो.दया एवं चिदुइ सव्वसंजए। अन्नाणी किं काही किंवा नाहिइ छेय-पावगं ॥४॥