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लोकतत्त्व-सूत्र
( २५४ )
तप दो प्रकार का बतलाया है वाह्य और अभ्यतर । वाह्य तपछ प्रकार का कहा है, इसी प्रकार अभ्यन्तर तप भी छ ही प्रकार का है।
अनशन, कनोदरी, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, काय-क्लेश और संलेखना-ये बाह्य तप है।
(२५६ ) प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्गये अभ्यन्तर तप है।
( २५७ ) कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म, और शुक्ल-ये लेश्यामो के क्रमश. छ नाम है।
(२५८ ) कृष्ण, नील, कापोत-ये तीन अधर्म-लेश्याएं हैं। इन तीनो से युक्त जीव दुर्गति में उत्पन्न होता है।
( २५६) तेज, पद्म और शुक्ल-ये तीन धर्म-लेश्याएं हैं। इन तीनो से युक्त जीव सद्गति में उत्पन्न होता है।