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महावीर-वाणी
( १५७ ) एमेव स्वम्मि गमो परोसं, ___उवेइ दुवखोहपरंपराओ। पबुद्धचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥८॥
( १५८ ) हवे विरतो मणुओ विसोगो,
एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्चरिणीपलासं ॥
(१५६ ) एविन्दियत्या य मणस्स प्रत्था,
दुक्खस्स हे मणुयस्स रागिणो । ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स करन्ति किंचि ॥१०॥
( १६० ) न कामभोगा समयं उवेन्ति,
न यानि भोगा विगई उर्वन्ति । ने तप्पनोसी य परिगही य,
सो तेसु मोहा विगई उवे ॥११॥