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चतुरडीय-सूत्र
( १०५ ) मद्धर्म का श्रवण और उसपर श्रद्धा-दोनो प्राप्त कर लेने पर भी उनके अनुसार पुम्पार्य करना, यह तो और भी कठिन है। क्योकि मंसार में बहुत से लोग ऐमे है, जो सद्धर्म पर दृढ विश्वास रखते हुए भी उसे आचरण में नहीं लाते।
परन्तु जो तपस्वी मनुष्यत्व को पाकर, सबर्म का श्रवण कर, उसपर श्रद्धा लाता है और तदनुसार पुरुषार्य कर पासवरहित हो जाता है, वह अन्तरात्मा पर से कर्मरज को भटक देता है।
(१०७) जो मनुष्य निष्कपट एव सरल होता है, उसीकी आत्मा शुद्ध होती है। और जिसकी आत्मा शुद्ध होती है, उसीके पास धर्म ठहर सकता है। घी मे सीची हुई अग्नि जिस प्रकार पूर्ण प्रकाश को पाती है, उसी प्रकार सरल और युद्ध सावक ही पूर्ण निर्वाण को प्राप्त होता है।
( १०८ ) कमों के पैदा करनेवाले कारणो को ढूंढो-उनका छेद करो, और फिर क्षमा आदि के द्वारा अक्षय यश का सचय करो। ऐसा करनेवाला मनुष्य इस पार्थिव शरीर को छोडकर ऊर्ध्वदिगा को प्राप्त करता है अर्थात् उच्च और श्रेष्ठगति पाता है।