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[ १७ ] जैन शास्त्र के प्रसिद्ध दो श्लोक, एक हिन्दी का और एक संस्कृत का, मैने बहुत वर्ष हुए, श्री शीतलप्रसाद जी ब्रह्मचारी (जैन) से सुने मुझे बहुत प्रिय लगे। कला वहत्तर पुरुष की, वा में दो सरदार,
एक जीव की जीविका, एक जीव उद्धार । पालवो बन्वहेतु स्यान् मोक्षहेतुश्च सवर,
इतीयम माईती मुष्टि सर्वमन्यत् प्रपञ्चनम् । वैशेषिक सूत्र है,
यतोऽभ्युदय-नि श्रेयस-सिद्धिः स धर्मः। तथा वेदान्त का प्रसिद्ध श्लोक है, वन्वाय विपया सक्तं, मुक्त्यै निविषय मन.,
एतज् ज्ञान च मोक्षश्च, सर्वोऽन्यो ग्रन्थविस्तर.। समय समय के सम्प्रदायाचार्य, यदि ऐसे विरोध-परिहार पर, सम्वाद पर, अविक ध्यान दे और दिला, तो पृथ्वी पर स्वर्ग हो जाय । पर प्राय स्वयं महा "मानव"-अस्त होने के कारण, यतिभिक्षु-संन्यासी का रूप रखते हुए भी, भेद-बुद्धि, कलह, राग-द्वेष ही मनुष्यो में बढाते है। यहाँ तक कि स्वय महावीर और बुद्ध के जीवनकाल में ही, (यथा ईसा और मुहम्मद के जीवनकाल में ही),