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________________ [ १२ ] २५ सूत्रो, वा अध्यायो में, ३४५ प्राकृत श्लोकों, और उनके हिन्दी अनुवादो का संग्रह है। मुझको नही ज्ञात है, कि जैन वाङ्मय में इस प्रकार का कोई ग्रंथ, प्राचीन, हे वा नहीं। प्रायः न होगा; अन्यथा श्री बेचरदास जी को यह परिश्रम क्यो करना होता। बौद्ध वाङ्मय में, एक छोटा, पर बहुत उत्तम अंथ, “धम्म-पद" के नाम से, वैसा ही प्रसिद्ध है, जैसा वैदिक वाङ्मय मे "भगवद्गीता"; "धम्म-पद" भी स्वयं बुद्धोक्त पद्यो का संग्रह कहा जाता है। संभव है कि "महावीर-वाणी", जैन सम्प्रदाय मे प्राय. वही काम देने लगे, जो बौद्ध सम्प्रदाय में धम्मपद देता है। भेद इतना है कि, "महावीर-वाणी" के अधिकतर श्लोक, संसार की निन्दा करने वाले, वैराग्य जगाने वाले, यतिधर्म संन्यासधर्म सिखाने वाले हैं। गृहस्थोपयोगी उपदेश कम है, पर है। विनय सूत्राध्याय मे कितने ही उपदेश गृहस्थोपयोगी है। ___ मुझे यह देख कर विशेष आनन्द हुआ कि बहुतेरे श्लोक ऐसे है, जिनके समानार्थ श्लोक प्रामाणिक वैदिक और बौद्ध अथो में भी बहुतायत से मिलते है। प्रथम मगलाध्याय के बाद के ६ अध्यायों में पांच धर्मों की प्रशसा की है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। मनुस्मृति, बौद्ध पचशील, योग-सूत्र आदि, इन्ही पाँच का उपदेश करते है। ये, गृहस्थ श्रावक, उपासक के लिये भी, देशकाल-समय के (शर्त के) अवच्छेद के साथ, उपयोगी है। और यति,
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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