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________________ [१० ] ही रहे, कि श्री वेचरदास जी ने निश्चय कर लिया है, कि विना मेरी प्रस्तावना के, अथ छपेगा ही नही । इस प्रीत्याग्रह के आगे, मुभको मानना ही पड़ा। श्री गुलाबचन्द जी, “महावीर-वाणी" की हस्त-लिखित प्रति ले कर, स्वय काशी आये। मैने समन अथ, अधिकाश उनसे पढवा कर, शेष स्वय देख कर, समाप्त किया। महावीर स्वामी की, लोक के हित के लिये कही, करुणामयी, वैराग्य भरी, वाणी को सुन और पढ कर, चित्त में शान्ति के स्थान में प्रसन्नता ही हुई, और सात्त्विक भावो का अनुभव हुआ । महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध, कुछ वर्षों की छुटाई बड़ाई से, समकालीन हुए यह निर्विवाद है। किन्तु इन दोनों महापुरुषो के जन्म और निर्वाण की ठीक तिथियो के विषय में ऐतिहाविदो मे मतभेद है; तथापि यह सर्व-सम्मत है कि विक्रम पूर्व छठी शताब्दी में दोनो ने उपदेश किया। जैन सम्प्रदायो का विश्वास है कि महावीर का, जिनका पूर्व-नाम "वर्धमान" है, जन्म, विक्रम पूर्व ५४२ और निर्वाण वि० पू० ४७०, मे हुआ। ___ उस समय मे "लिपि" कम थी, "श्रुति" और "स्मृति" की ही रीति अधिक थी; गुरु के, ऋषि के, महापुरुष के, प्राचार्य के वचनो को श्रोतागण सुनते और स्मृति मे रख लेते थे। महावीर के निर्वाण के बाद दूसरी शताब्दी में बडा अकाल पड़ा, जिनानुयायी, "क्षपण"
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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