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महस्रद्वितयात् सूर्य-संख्याके विक्रमाब्दके
भव्यजीवप्रबोधाय बोधाय च निजात्मनः।१०२।। वर्षायोगे हिसारस्य श्री समाजानुरोधतः
भृगमलेन रचितः सम्यक्त्व-सारदीपकः । १०३।।
यह "सम्यक्त्वसार दीपक या शतक" नाम का अन्य श्री वीर विक्रमादित्य सम्बत् २०१२ की शाल में चतुर्मास के ममत्र में दिगम्बर जैन समाज हिसार की प्रेरणा से सभी भव्य जीवों के कल्याण के लिये एवं अपने आपके भले के लिये भी भूरामल ने बनाया है। छप्पयमङ्गलमयअरहन्त सन्त सव को सुखदाई। मङ्गल सिद्ध महन्त निजात्मज्योति सुहाई ॥ आचार्योपाध्याय साधु समरसके भर्ता । सब जीवों के लिये सहज मङ्गल के कर्ता । जिनवर भापित धर्म भी जीवनका आधार हो । जिसके मृदु अभ्यास से दिल के दूर विकार हो ।
ॐ
शुभभूयात् -*