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( ५ )
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समय अकेले अर्जुन के पास उर्वसी (इन्द्र अप्सरा) सोलह सिंगार करके गई थी तो अर्जुन ने पूछा- हे माता अर्धरात्रि समय यहां आनेका क्या कारण हुवा, उर्वसी ने कहा- हेवीर तुमसे तुम्हारे जैसा पुत्र लेने आई हूँ । तव अर्जुन ने उसको नानाप्रकार से समझाकर उसके पैरों में मस्तक टेक दिया और नम्रभाव से बोला-हे माता जी मुझ कुन्तीपुत्र को अपना स्वधर्म का पुत्र समझलो । हे श्रोतागणों ! फिर वहां से वह उर्वसी लज्जित होकर चली गई । हे देवी देवतावो आपलोगो के लिये क्या यह प्रत्यक्षप्रमाण नहीं है, हां मौजूद है जब कि तुम श्रेष्ठ शरीरधारी सच्चे सन्त गुरुवों के पास जावांगे वो वह आपका विषयवासनाओं से मन हटा देंगे।
सतगुरु वैद्य वचन विश्वासा।
मंयम यह न विपय की श्राशा ।। अर्थात- सत् गुरु रूपी वैद्य के वचनो में पूर्ण विश्वास जो कर लेते है उनकी विषय वासनावो का परित्याग कराकर के जन्म मरण के चक्कर से छुड़ा देते हैं।
सचिव वैद्य गुरु तीन जो-प्रिय वोलें भय आस । राजधर्म तन तीन कर-होय वेगही नास ।।
अर्थान्- राजा का मन्त्री वैध और सत् गुरु यह वीनी यदि उनके भय से तथा प्रसन्नता के भय या लाभ की आशा