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________________ ( १३०) - - - - महानतादि मय शुम रूप होती है जिससे उच्चगोत्रादि पुण्य प्रकृतियों का वन्ध होकर उन्हे अहमिन्द्रपद की प्राप्ति होजाती है फिर भी उनका उपयोग मलिन ही बना रहता है अतः संसार का अभाव कमी नहीं हो पाता। शङ्का- इसी लिये तो हम कहते हैं कि शुभोपयोग शुद्धोपयोग का साधन नहीं है यानी शुभ क्रिया करते करते यह जीव अन्तमें नियम से शुद्धता को प्राप्त कर जाता है ऐसा मानना गलत है। उत्तर- उपर सिर्फ शुभयोग के बावत की बात कही गई है जो कि द्रव्यलिङ्गी के होता है। उसको किसी भी जैनाचार्य ने किसी भी जगह शुद्धोपयोग का साधन कभी भी नही बतलाया है अतः उसे ही शुद्धोपयोग का साधन मानने वाला अवश्य भूल खाता है, परन्तु शुभोपयोग की चरमावस्था शुद्धोपयोग का कारण जरूर है जैसा कि आचार्यों ने बतलाया है। तुम जो शुभोपयोग कोःशुभ योग मे घसीट रहे हो सो ठीक नही है। शुभ योग भिन्न चीज है' और 'शुभापयोग मिन्न । योग तो आल्मा की मन, बचन, काय के निमित्तासे होनेवाली सकम्पता का नाम हैं और उपयोग नाम चैतन्य परिणाम का। वे दोनों ही अशुभ, शुभ और शुद्ध के भेद से तीन तीन तरह के होते हैं । हिंसा करना, मूठबोलना, डाह रखना इत्यादि रूप चेष्टा का नाम अशुभ योग है जो कि पापबन्ध का कारण होता है। जीपोंकी रक्षा करना, सत्य-बोलना, जिनस्मरण करना
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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