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भावों का मूलोच्छेद करके पूर्णतया प्रध्वंशात्मक प्रभाव करके सर्वज्ञ पन को पालिया हो एवं यह जीव सशरीर से निःशरीर किस प्रकार वन सकता है इस प्रकार के सवक को इन संसारी जीवों के सम्मुख उपस्थित करने वाला हो वह परमात्मा कहलाता है जिसको कि आदर्श मानकर हम अपना सुधार कर सकते हैं।
आप्तोपज्ञमनुल्लंध्यमदृष्टेष्ट विरुद्धवाक्,
तत्वोपदेशकत्साशास्त्र कापथघट्टनं ।।२।। अर्थात् जो मूल में सर्वन का कहा हुवा हो, किसी भी चीज का परिणमन कभी भी जिसके कथन से बाहर नहीं जासकता हो, इसी लिये जिसमें प्रत्यक्ष से और अनुमान से भी कोई अडचन खड़ी नहीं की जा सकती हो, विकृतमार्ग का खण्डन करके जो वास्तविकता पर जोर देने वाला हो, अतः सबका भला करनेवाला हो वही आगम है।
नैराश्यमेव यस्याशाऽऽरम्मसङ्गविवर्जितः
साधुःस एव भूभागे ध्यानाध्ययनतत्परः ॥२॥
अर्थात्-निराशपना-आशा,तृष्णा से विलकुल रहित हो रहना ही जिसकी आशा यानी सफलता हो, जो किसी भी प्रकार के काम धन्धे से और धनादि से सर्वथा दूर रहने वाला हो, जो ध्यान और अध्ययन में यानी उपयुक्त परमात्मा को याद करने में या पूर्वोक्त आगम के पढ़ने में ही निरन्तर लगा रहने वाला हो वही इस भूतल पर साधु कहलाने का अधिकारी