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* प्रस्तावना
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प्रस्तुत पुस्तक - सम्यक्त्वसार शतक के लेखक है हमारे श्रद्धेय क्षुल्लक जी श्री १०५ श्री ज्ञानभूषण ( पं० भूरामल जी महाराज | जिन का जन्म - राजस्थानके 'राणोली' (जयपुर) ग्राम हुवा है। आपकी पूज्य माता जी का नाम श्री घृनवलि देवी और पिता जी का नाम श्री चतुर्भुज जी है । आप खण्डेलवाल वैश्य जाति से सम्बन्ध रखते हैं ।
हमारे इस प्रन्थ के कर्ता यद्यपि वैसे तो कुमार ब्रह्मचारी हैं । परन्तु आपने १८ वर्ष की अवस्था में अध्ययनकाल में ही नियम पूर्वक ब्रह्मचर्यव्रत धारण कर लिया था । आजसे आठ वर्ष पूर्व आपने गृह त्यागकर श्री गम्बर जैनाचार्य श्री १०८ श्री वीरसागर जी के संघ में प्रवेश किया । आप संस्कृत के. तथा जैनागम के भी बड़े प्रकाण्ड पण्डित है, अतः आप संघ में रहते हुये उपाध्याय का कार्य करते रहे है ।
दो वर्ष से आपने क्षुल्लक की दीक्षा धारण की है । आप का अधिकतर समय, अध्ययन और अध्यापनमे ही व्यतीत होता है । आप स्वभाव से सरल परिणामी होने के कारण लोकप्रिय हैं। जहां कहीं भी आपका चतुर्मास होता है वहां त्यागियों तथा श्रावकों के पठन पाठन मे तथा ग्रन्थ के लिखने में ही आपका विशेष समय व्यतीत होता है। आप जैन-धर्म के मर्म को अच्छी तरह से समझे हुवे हैं और उसका उपदेश भी बड़े सरल शब्दों व्याख्या करते हुये किया करते हैं । आपके उपदेश से हर एक प्राणी - जो जैन दर्शन को नहीं जानता है