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Socialism And Śrī Vira
BY SIT. HARISATYA BHATTSCHARYA M. A.; B. L.. Ph. D., HOWRAH
[आजकल सामाजिक विषमता ठौर ठौर पर दिख रही है। डॉ० हरिसत्य भट्टाचार्यजीने दस विषमताका कारण सार्थिक असमीकरण बताया है, जो मानवकी असंतोष वृत्तिने उत्पन्न हुआ है। आजका सघर्ष धनिकवर्ग और दरिद्र नारायणके मध्यका है। विनाशसे बचने के लिये मानवको आर्थिक असमीकरणका अन्त करना होगा। एक ऐसे मानव समाजका निर्माण व्यावश्यक है, जिसमें गरीबसे गरीबकोमी जीवननिर्वाहको वस्तुयें सुगमता से मिल सके। डॉ० सा० उस मनोवृत्तिका विरोध करते हैं जिसमें बलात् धनिकोकी सम्पत्ति छीननेका विधान है। यह तो सांधी लूट हुई । लूटसे स्थाई शान्ति स्थापित नहीं हो सकती । इस मनोवृत्तिका सुसस्कृत रूप साम्यवाद है, जिसके अनुसार सम्पतिका राष्ट्रीयकरण होना उचित है। सच सम्पत्ति सरकारको होगी मीर सरकार उसका समतुल्य वितरण कर देगी। यूचपके कतिपय दशामें ऐसा हुआ है। परंतु इससेभी समस्या हल नहीं हुई है। उन देशोंके मानवोंका असतोष मिटा नहीं है। व्यक्तिगत आकाक्षाओंका होना मानवके लिये स्वाभाविक है। उसकी इच्छा और आवश्यकताको व्यक्ति स्वग्रही ठीकसे समझ पाता है। अतः मानवप्रकृति अपनी इस स्वेच्छावृत्तिमें बाहरका हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकती। इसी लिये भार्थिक राष्ट्रीयकरणसेमी मानवका असतोष नहीं मिटा है। डॉ० डा० पूछते है कि आखिर इस असतोषको मेहनेका उपाय क्या है ? और स्वयंही उत्तर देते है कि तीर्थंकर महावोरको जीवनघटनाओं में यह उत्तर भन्तदित है । वीर जन्मसेही सतोषी थे दूसरेकी चांज हडपनेसे वह दूर थे। गृहत्यागी होनेके एक वर्ष पहले से उन्होंने स्वेच्छा से अपनी धनसम्पत्ति वांटना शुरू की थी और दीक्षा समय अपने उनके कपडे भी दूसरोंको दे डाले। केवलज्ञानी होने पर तो वीरको वन और आहार दोनोंही अनावश्यक हो गये। वह पूर्ण संतोषी जो बने थे । अतः वीरके आदर्शका अनुकरण करने से मानव संतोषी हो सकता
| उसका हृदय परिवर्तन नावश्यक है। प्रत्येक मानव अपनी साकाक्षायाँको जोते मोर जो उसके जीवननिर्वाह के लिये आवश्यक हो, बहही वह अपने पास रखे-अधिक संग्रह न करे । उसके संतोषसे समिष्टि संतुष्ट होगी और तब मानव सुखी होगा | अतः महावीरका नपारंप्रहृवादही लोकको सुखी बना सकता है । का० प्र० ]
The problem of problems today is how to stop the struggle between the rich and the needy. This problem is troubling and tormenting the leaders of society in every country. On the one hand, we have the wealthy section; people of this section have plenty of food, clothing and lodging; enough of provision for the future and bank balances to meet any eventualities Yet are they hardly contented; they are struggling hard to augment and increase what they have had, struggling restlessly, never caring to think where they would stop On the other hand, there is the sweating mass, toiling and moiling for scanty meals, hardly sufficient for keeping their bodies and souls together. In winter they have no warm clothes, in summer, they have got to submit the oppressive heat; and in the rainy season, showers and thunder play ruthlessly ટ $