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The Last Teacher. Br Sri IT. GrozdE TROTT, ROI ragbok (P*GLIDI {श्री० जज ट्रॉट मा० अंग्रेज भव्य चिनारकरे। उन्होंने पिवर तर म धारण दिया है । इस रेसमें उन्होंने अपना ले सान्नम दोश निगया है। या निगडे है कि परमात्मा गहावारने गरीर पचनले मापा मार्ग सोपान कला है वह और उनसे सवही बाशाय भार मान रहतीनुसार पुन फंसा है और मिच्या विचारधारानं पा रहा है । मजिपागकी मुस्मिोतो नही है । जयार रोती यह मिया स्थिति रहेगी, नुनमान का नहीं हो मोगा। मनाम निको पालना गायक है । राजनतिक चालासे रसको बदलने के प्रमाल विफल होंगे। सी सीता और विशेष स्वतंत्र भारत के नवयुवक स्तव्य है कि यह म० महागारमनात हिमसे हनी रानाको अनुमाणित करें। तवही लोग्ने सयम, समता, महिम्णुता, दया आदि मारग भान रोगी,
और उनसे लोक मुखी होगा। म० महावारके महान् सामने रोसना, मान्ति, और दयाका पासान हुआ था। १० पानायके उपरान्त शान्तिम सं थंधाने माने माने पाये थे। फरत दारव, दुस, मय, मोक, सनगद, इंधा, वासना-मबही दाबाका हल हुन था। महावीरको महान् आमा दिल्य प्रदेशोंका प्रभाव लोकी शायरी यातायर भगवान्छ। साक्षात् बता देता है : 'सुख कहाँ है?' के उपदेशने मरिमार्ग बनता है। मान्यहिनकी यह सबसे बडी देन है। अल्पकाल्में हम सब एक दिन ऐहिक लीला समाप्त करेंगे शादरा जन्म पायेगे। यह जन्म-मरणश चक्र चलता रहता है। इसका सन्त टम रूपसे प्रारंभ होना है जिसमें व्यात मुकिमार्गमें श्रद्धा लाता, उसका ज्ञान पाला बार आचरण प्राता है। यह मान्न उन्न पुष्य योगने मिला ई-मौभाग्यने सत्यके दर्शन हुए है। इस अवसरको चूने तोलतों पोतर रस्म
हैं। इसे कलार टाल्नाक नहीं । म० महावीरका जन्म सन् १९९१० पू० हुमा! तौर पर - पब हुए तब उन्होंने घर छोडा-साधु हुवे । बारह ज्योतक तप त्पा और देवली हुये। सोकश्मिक • होकर नहावीरले ३० वर्षांतक धमापदेश दिया। उन्होंने कहाः महिना परम धर्म है । जीपाशी का
करना मानवशास्तव्य है। मानवको लडना है तो वासनाने टटे सौर थायोंको जोते 1 का० ०] - Liberation of the soul from the shackles of the body was accomplished by the supreme Lord Vabarira, the last of the twenty-four orld teachers of Jainish. The way of liberation is the greatest of all scicaces, the finest of all arts, the attainment of eness hope, and the fulfilment of all ambitions Because the world is evil and the hearts of men are shrouded by wrong thinking and wrong ideals, there is no place for the science of Liberation. Until that place is found and acknowledged, mankind will be unhappy and continue to live in misery, surrounded on all sides by suspicion and felt.
This unbappy state of affairs Deed not continue. Every bere men are striring-through political action-to change the face of the world. I say this to all men of politics, particularly to the young men of free Indta, that jour political theory-no matter hos perfect or logical it may appear-is empty and