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श्री राहुल सांकृत्यायनजी।
ओसवाल, बर्न-वाल, रोहतगी ( रस्तोगी) आदि नामोंसे प्राख्यात हुए । आजभी यौधेय (हरियाना) की भूमिसे निकली इन जातियोंमें शातृ-पुत्र महावीरकी शिक्षाका आचरण या धर्मके रूपमें अस्तित्व पाया जाता है। महावीर एक बलशाली जनसत्ताक गणमें पैदा हुए और दूसरे गणसे निकले लोगों में आज उनका घेर्म सुरक्षित है। सोलह शताब्दियों तक निरकुश स्वदेशी विदेशी राजाओंके जयेके नीचे दबता पिसता भारत आज फिर एक विशाल प्रजातन्त्रक रूपमें परिणत हो रहा है। गण-तत्री धर्मवाले हम बौद्धों और जैनियोंके लिए यह अभिमानकी बात है।
यह आकस्मिक बात नहीं है, कि बुद्ध और महावीरको जन्म देनेवाले राजतन्त्र नहीं, प्रजातन्त्र थे। बुद्ध शाक्योंके प्रजातन्त्रमें पैदा हुए, और महावीर वैशाली के लिच्छवियोंके प्रजातन्त्रमें । लेकिन यह कितने आश्चर्यकी बात है, कि महावीरके अनुयायी आज उनकी जन्मभूमिको भूल गए,
और वह उसे लिछुवार (मुंगेर जिला) में ले गए । लिछुवार अग देशमें है, लेकिन जैन ग्रन्थोंके अनुसार महावीरको वैशालिक कहा गया । “विदेह जच्चे, विदेह सुडमाले " का वचन बतलाता है, कि उनका जन्म विदेह देशमें हुआ था। विदेह और जि (वैशाली पाला प्रदेश) आपसमें वैसाही सम्बन्ध रखते थे, जैसा कोसल और शाक्य । एकबार कोमलराज प्रसेनजितने बुद्धसे कहा था " भगवानभी कोसलक हैं और मैमी कौसलक हू" वस्तुतः गगा-गण्डकी (तत्कालीन मही) कोसी और हिमालय के बीच के सुन्दर उर्वर समतल भूमिका नाम विदेह था। हा, भाषाकी दृष्टिसे एक होते हुयेभी किन्हीं राजनैतिक कारणोंसे इस भूमिका वह भाग जो आज मुगेर और भागलपुर जिलों के गगाके उत्तरीय अशके रूपमें परिणत हो गए हैं-को अगुत्तराय ( आय-गगाके उत्तर बाला अग) कहा जाता था। यही प्रदेश गुप्तकालमें तीर मुक्ति (नदियोंके तीर वाली भुक्ति-सूबा) कहा जाने लगा, जिसकाही अपभ्रश आजका तिहुंत शब्द है। विदेहकी राजधानी मिथला नगरी थी। काशी या देशका नाम, किन्तु पीछे उसकी राजधानी वराणसी (बरापारा, बनारस) का पर्याय वाची बन गया। यही बात विदेहके साथ उलटी तौरसे हुई और वहा राजधानी मिथिलाके नामने सारे देशको अपना नाम दे दिया। इसी विशाल विदेह भूमिका पश्चिमी भाग था लिच्छवि गणका वृद्धि देश, जिसकी राजधानी थी वैशाली। इस प्रकार शातपुत्र महावीर 'वैशालिक भी थे, वेदेहिक ' भी थे।
भगवान महावीरको ज्ञातृ-पुत्र या मातृ-सन्तान कहा गया है। पालीमें ज्ञातृका रूप 'नात' बन गया है। नातिका (ज्ञातृका) नामका एक महा ग्राम वैशाली प्रजातन्त्रर्मे या 1 वैशाली (वसाद) और उसके आसपास अबभी एक प्रभावशाली जाति रहती है, जिसे जयारिया कहते हैं । यह भूमिहार या पछिमा ब्राह्मण जातिकी एक शाखा है। जहां छपरा, गोरखपुर, बालेया आदि जिलोंमें भूमिहारके लिए ब्राझणका प्रयोग आश्चर्य के साथ सुना जाता था, वहा दरमगा, भागलपुर आदिके मैथिल ब्राह्मण भूमिहार ब्राह्मोको पछिमा ब्राह्मणही नहीं कहते, बल्कि उनके साथ रोटी बेटी के सैकड़ों उदाहरण मिल सकते है । जथरिया शब्द शातृसे अपभ्रश होकर बना है। इसके सिद्ध करनेके लिए बहुत परिश्रमकी आवश्यकता नहीं-ज्ञातृसे शातर फिर बातर-उपरान्त जतरिया, जयरिया । लेकिन कितने जथरियों और उनसेभी अधिक भूमि-हारोंकी इस पर घोर आपत्ति है। वह इसलिए, कि आज