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मी कामताप्रसाद जैन। भरेंगे । जो उन्होंने कहा, पह करके दिखा दिया अपने हत्यारों के प्रतिभी वह दयालु रहे। महान थे वह।
भ० महावीरने जिस प्रकार अहिंसाको परम धर्म माना और लोक जीवनमें उसको प्रतिष्ठापित किया, उसी प्रकार उनके पक्षात् म. गांधीने अहिंसा के प्रयोगोंको मानवी जीवन में सफल बनाया। उन्होंने स्पष्ट घोषित किया कि "कुछ लोग तलवारले हिन्दूधर्मको बचाने की बात करते हैं। वे तल. पार टेकर कवायद करते हैं। यह सव क्यों ? मारनेके लिये । इस तरह हिन्दूधर्म वढनेवाले नहीं है। सत्यसेही धर्म रहता है। 'सत्यानास्ति परोधर्म' और 'अहिंसा परमो धर्मः' भी पहेन्दुधर्मने सिताया है।"
म० महावीरको म० गांधीने अहिंसाका महान् उपदेशक माना और उनके अनन्यमक्त कवि रामचद्रजीसे धर्मतत्वको समझ कर जीवन सफल बनाया और भारतवासियोंको आत्मस्वातन्य-भोगका मुख सुलभ कराया। हमारा कर्तव्य है कि सत्य और अहिंसाको जगमें सजीव बनावें।
गुञ्जरित होगा अहिंसक वीरके सन्देशका ख !
( रचयिता: श्री कल्याणकुमार जैन, 'शशि')
विन्धके हित वह रहा हो प्रेमका अविभ्रान्त निझर रोम रोम स्वतंत्र हो बन्दी न हो नीधन हृदय स्वर!
आज हिंसा रह गई बुझते प्रदीपोंका उजाला विश्वमै होगा अहिंसा सस्यका फिर बोलबाला!
एक्यता समता क्षमा 'सौहाद्र जागे उत्तरोसर
शान्ति जननी शुछ हार्दिकता पहे जगमै निरन्तर!
फिर पहायेगा निरर्थक रक्क मानव का न मानव गुलरित होगा अहिंसक वीरके संदेशका रव!
विश्व रक्षाके लिये अन्तर सदा हो प्रोत्साहित हो धरामय घोर हिंसा भावना होकर पराजित !
नग जलाने के लिये कोई न फिर दीपक जलेगा समर जीवन दीप जल कर विश्वमे तमहर बनेगा।
आज हिंसा दानवोके केन्द्रमै मीपण प्रलय हो ! विश्वके हित 'वीर' के सन्देशकी जगमें विजयहो।।
१-२. " विधवाणी"-ध्रद्धाञ्जलिमक, पृष्ट १९९-१९३.