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श्री कुमार वीरेन्द्रमसादजी जैन
ईसासे पूर्व द्वितीय शताब्दिमें फलिका जैन सन्नाट खारवेल था; जिसके पौरुष तथा राज्य विस्तार के लिये सेनाकी व्यवस्थित तीन गतिका वर्णन देखकर सुप्रसिद्ध विद्वान श्री काशीप्रसादजी जायसवालन सम्राट खारवेलका नामकरण किया था: "भारतका नेपोलियन". इनके हाथीगुफा वाले लेखमें उल्लेख है कि सारयेलका सौन्दर्यमी भगवान महापोरके सदृश्य था. इसमें यहभी लिखा इंकि भ. महापौरने कुमारी पर्वतपर आकर उपदेश दिया. उक्त कथनसेमी प्रमाणित होता है कि भ. महावीर तत्कालीन युगके महाविभूति थे.
इतनाही नहीं इसके अतिरिक्त भिन्न भिन्न स्थानोंपर म. महावीरकी अनेक मूर्तिया प्राप्त हुई ई. ये मूर्तिया उनकी ऐतिहासिकताके प्रमाण है. जिलाएटाकी तहसील अलीगजके अन्र्तगत सराय अपहत नामक स्थानसे प्राप्त गुप्तकालीन चतुर्मुखी मूर्ति अत्यन्त मनोहर दृश्य है । (चिन्न न. ३) लखनउ के सग्रहालयमें कंकाली टीला मथुराकी खुदाईसे प्राप्त कुछ जैन मूर्तिया तथा शिलालेख संग्रहीत है. उनमें एक शिला पट्ट ऐसा है जिसमें भ. महावीरका जन्म कल्याण देवगण मनाते दर्शाये ई, उसी संग्रहालयमें म. महावीरकी जननी महारानी त्रिशलाकोभी सुन्दर मूर्ति है. (J ६२६) इस मूर्तिकी कलाकुशलता अनुपम तथा हृदयग्राही है. मपुरा सग्रहालयके अन्तर्गतभी एक शिलापट्ट लशान कालका है, इसमें म, वीरके कुमार कालका उस समयका चित्र चित्रित है, जिस समय वे बालसखाओंके साथ आख मिचौनी सेल रहे थे तथा देवने परीक्षा ली थी, (चित्र न. २) उपरिलिखित इन प्रमाणोंसे यह सिद्ध है कि भ, महावीर ऐतिहासिक महापुरुप थे।
अन्ततोगत्वा हम इस निस्कर्षपर आते हैं कि म. महावीर ऐतिहासिक महाविभूति तथा श्री हनुमानजी पौराणिक महापुरुष थे, यदि श्रीहनुमानजी श्रीरामचन्द्रजीले समयमै रामचन्द्रजीकी सहायता कर मैत्री का सुन्दर स्वरूप दे आत्म कल्याण कर मोक्ष सिधारे; तो म, महावीरने अपने आत्म सयमसे आ पात्मिक तत्वों सत्य, अहिंसा शीलादिकी अटूट एव अविचल चट्टानपर खड़े होकर लोककल्याण किया और मोक्ष पधारे, इस प्रकारसे इन उमय महापुरुषोंका व्यक्तित्व मिन मिन्न सिद्ध है !!