________________
अहिंसा और विश्वशान्ति पर माननीय गवरनर महोदय
सी. पी.के विचार ।
गवर्मेंट हाउस नागपूर
ता.९-७-४८
महात्मा गाधी को आधुनिक युग के अहिंसाके सबसे बड़े दूत थे सदा कहते थे कि अहिंसा धर्मका प्रचार सत्य धर्मके प्रचारके साथही साथ होना चाहिये। उनका विश्वास था और उनकी शिक्षाभी यही थी कि सत्य और अहिंसा दोनो अभिन्न है । एकके सिवा दूसरेका विशेष उपयोग नहीं है। आहिसा धर्मका प्रचार इस समय सारी दुनिया के लिये और विशेष कर हिंदुस्थानके लिये बड़े महत्त्व का है। सपूर्ण मानव समान और खासकर दुनियाके अत्यत बलवान राष्ट्र जैसे अमेरिका और रूस पदि इस तत्वको ग्रहण नहीं करते और इसे उपयोगमें नहीं लाते तो कई लोगोको यह साफ साफ दखाई दे रहा है कि मानव समाजका नाश होनेमें देर नहीं है । ईश्वरने मनुष्यको बुद्धि और दर दृष्टी दी है और यदि मनुष्य इन गुणोका योग्य समयपर उपयोग करे तो प्रचड नाश टल सका है। पन्न यही है कि क्या मनुष्य खुद होकर अपनी अकल काममें लावेगा और अपना कदम पीछे ले लगा या अपने इसी रास्तेसे चलकर अपना नाश कर लेगा। यदि सत्य और अहिंसाको कार्यशाली करना है तो लोगोंको अपना चारित्र्य बलवान बनाना चाहिये । युद्धौ जान मालका नुकसान बहुत मारा होता है परंतु चारित्र्यका और भी अधिक । जान मालका नुकसान पूरा किया जा सकता है छोकन विगटे हुए चारित्र्य को फिर बनाना मुश्किल थे । इसलिये यदि आज दुनियाके राष्ट्र, खासर राष्ट्र जो सहारके शस्त्रों से सुसज्य हे, सत्य और अहिंसाको अपना ध्येय मानते हैं और उसकी पूर्तिके लिये पूरी पूरी कोशीश करते हैं तो मानव जाति निधय सुखी होगी, अन्यथा नाश अनिवार्य है।
-मंगळदास पकवासा