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________________ पंव्वझ्या नगरी। ( इतिहास तत्व महोदधि जैनाचार्य श्री. विजयेन्द्रसूरी) उद्योतन सूरीद्वारा प्रणीत कुवलयमाला कहा ग्रन्थ शक सम्वत् ६९९ (विक्रम सं. लाभग ८३४ ) की चैत्रवदी १४ को जाबालिपुर (मारवाडका जालौर नामक स्थान) में पूरा हुवा था । इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में लिखी गाथाओंमे 'पब्वइया' (पर्वतिका ) नामक नगरीका वर्णन आता है । वहा इस नगरीको चन्द्रभागा ( चनाब) नदीके किनारे पर बताया गया है। कुवलयालाफहाके रचयिता उद्योतन सूरिके पूर्वपुस्य हरिगुप्त इसी नगरीमे रहते थे और तोरमाण हूण रानासे सन्मानित और इसके गुल्थे । थामस वैटर्स कृत आन युआन च्वाइ ट्रैवल्स इन इण्डियाके नकशेमें युभान वाड की यात्राओंके आधार पर चन्द्रभागा नदीके किनारे पर 'पर्वत प्रदेश, प्रदर्शित किया गया है जो कि काश्मीरके नीचे है. इस की ही राजधानी पर्वतिका (पन्वया) थी। महाभारतके सभापर्व में अर्जुन की दिग्विजयके वर्णनमें अर्जुनका काश्मीर जाते समय पर्वत प्रदेशमैसे हो कर जानेका उल्लेख है ।३ पाणिनिक तक्षशिलादि गण में भी जिस 'पर्वत' देशका उल्लेख है और विशाखदत्तके मुद्राराक्षसमें पर्वतक और मल्प्यकेतु नामके जो पान उपस्थित किये गये हैं वे सब इसी पर्वत प्रदेशके रहनेवाले थे। श्री वेनीमाधव वस्ाके भतसे मुलतानके पूर्वोत्तरमें ११६ मील पर यह पर्वत १. भारतीय विद्या, Vol. II, Part I, नवम्बर १९४०, पृ. ८४, गाथा २. ३. सुइदिय बारसोहा विसिय कमलाणणा विमलदेहा । तत्यस्थि जलहिदइआ सविना अह चंदमाम ति॥ तीरम्मितीय पयहा पवइया णाम स्वणसोहिला। जत्यविध ठिए मुत्ता पुहह सिरितोर रायेण ।। On Yuan Chwang's Travels In India By Thomas Watters, Vol. II के अन्तर्मे दिया नक्शा. ३. महाभारत, सभापर्व, अध्याय २८ विजित्य चाहने शूरान्पार्वतीयान्महारथान् । जिगाच सेनया राजन्पुर पौरवरक्षितम् । पौरखं युधि निर्जित्य दस्यन्पर्वतवासिनर गणानुसबसकेतान जयत्सतपाण्डव । ततः काश्मीरमान्दारान् क्षत्रियान् क्षत्रियर्षमः।। ४. इस गणमें तक्षशिला, वत्सोद्धरण, कैमेंदुरक, प्रामणी, छगल, क्रोण्टुकर्ण, सिंहकर्ण, सकुचित किन्नर, काण्डधार, पर्वत, अवसान, धर्चर, कसको गणना है । २१९
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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