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ऋषभदेव और महावीर!
(ले० श्री० कामताप्रसाद जैन) 'वावीस तित्ययरा सामाइयं संजमं उवदिसंति । छेदोवहावणियं पुणा भयवं उसहो य वीरोय ॥७॥ ३२॥'
* * * * पुरिम चरिमाटु जम्हा चलचित्ता चेव मोहलक्त्वाय ता सन्ध पडिक्कमणं अंधलय धोड-दिद्रुतो ॥ ८॥२९॥'
-मूलाचार, जैन मान्यताके अनुसार इस कल्पकालमें जो चौवीस तीर्थकर हुवे, उनमें अषभदेव आदि और महावीर अन्तिम तीर्थकर थे। तीर्थंकर महावीरके ऐतिहासिक व्यक्तित्वमें विद्वानोंको शङ्का नहीं है; परन्तु ऋषभदेवको ऐतिहासिक महापुरुष मानने में कतिपय विद्वान् हिचकते हैं। जैनशास्त्रों में ऋषभदेवकी महान् आयु और कायका वर्णन पढकर वह समझते हैं कि ऐसा महामानव शायदही हुआ हो । अतः ऋषभदेव उनके निकट एक पौराणिक व्यक्ति मात्र रह जाते हैं। किन्तु वस्तुस्थिति कुछ औरही बताती है। राम और कृष्णके चरित्र और समयभी-भारतीय साहित्यमें विलक्षणसे जचते है; फिरमी राम और कृष्णके अस्तित्व, शङ्का नहीं की जाती, तो 'ऋषभको एक यथार्य महापुरुष मानने हम क्यों शङ्का करें। ऐसा कोई पुष्ट कारण नहीं है जिससे जैन मान्यताको अमान्य ठहराया जावे । उसपर ऋषमसम्बन्धी जैन मान्यताका समर्थन ब्राह्मण और बौद्ध स्रोतोंसेमी होता है। बौद्धप्रय 'मञ्जुश्री मूलकप में भारत के प्राचीन राजाओंमें राजा नामि और उनके पुत्र ऋषभदेवकी
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1. मागवत, स्कन्ध ५ अ. ३-६ में ऋषमदेवका वर्णन है, जहां उन्हें कैवल्यपति और योगधर्मका आदि उपदेशक बताया है। वह जैन तीर्थकरसे अभिन्न हैं। (विश्वकोष, भा० ३ पृ. ४४ और स्टीवन्सन, कल्पसूत्र भूमिका, पृ० १६) ऋग्वेद (८।२४ ) मेंमी ऋषभदेवका उल्लेख है। वैदिक प्रथामे जिनेन्द्र अपमका उल्लेख हुआ है, यह मात 'प्रभासपुराण' के निम्न कोकसे स्पष्ट है:"फैलाशे विमूले रम्ये वृषमोऽयं जिनेम्वरः । चकार स्वावतार च सर्वज्ञ सर्वगः शिवः ॥ ५९॥"
२. बौद्धाचार्य आर्यदेवने ' सत्रशास्त्र में ऋषमदेवको जैनधर्मका आदि प्रचारक लिखा है। (वीर १३५३ ) धर्मकीर्तिनमी सर्वज्ञके उदाहरणमें अपम और महाचौरका समान रूपमें उल्लेख किया है। (म्यायविन्दु ३) धम्मपद के उस पार बोर' पद न. ४२२ अभी तीर्थंकर ऋषमका उल्लेख हुमा बताया गया है। (इडियन हिस्टॉरीकल कार्टनों, कलकसा, मा० १५० ४१.४०५).