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________________ Kscu.pāla In Jain Iconography Nr Strl Ul.14 l'Aru&Sit!!! Ale do, BARODA Title Tririrst ने मूति-पता विजानफा वियोप अध्ययन किया है। T hvi कि रितिका परिचय कराते है। क्षेत्रका । सर देगा मालागी मतोंम उसकी मान्यता है। जैन शामिनी क्षेत्रपाना R ai करिता में क्षेत्रपारका पर्ण कृष्ण, टेटे दात और मार गुना ritinोटी और भूगे तमा फेम पर होते हैं। काठको राधाओं प र ARA मा नसमा मते उगे बताया है। गौधे हाथमें दमरू और अकुश लिये तया गामने मानिने दौसा। सौर मूर्तिको दाहिने पार्म पर क्षेत्रपालकी मूर्ति पना मानादिर में पाग छायापाले क्षेत्रपालका उरे, जो सर्प पहने ता:Minmen कायोषाला क्षेपाल बताया है और उसका वर्णन लिया । है। मानपान यमी एक अन्य प्रकारके क्षेत्रपालका उलेख है, जो घटिETiनि पापा मारा हता। दिगम्बर जैन सम्प्रदायममी क्षेत्रपाल माना जाता है। पहनानपन' में गमले ना मान रोपगे करना यताया है। उनके माथे पर जिनेन्द्रको मूर्ति खना होता INTERोनिनजाने अपने प्रति पाठॉम क्षेत्रपालफी मूर्ति मनाने पान लिगा है। उसके पर दोनों शामें बाल तलपार और नीचके दो हाथोंमें मुद्गर और शालिगलिगाउने प्रयाविधि " में उसका रंग नील और उसे मंगा, सर्पाभूषण पहने भार तीन भायाला बताया है। गो चारों हाथों में स्वर्णपान, तलवार, सहर और दमरू लिखे है। नपा चन्दनाय मंदिर पालकी एक ऐसी मूर्ति है। (चिन्न न. १) कारकलके दिग राय नेमिनाथ मदिरममा क्षेत्रपालको एक मूर्ति मिली है (चिन न. २) यह मूर्ति भयकर मुखाकृतिमी धार कमरमें धुरी याधे हुए है। गाव हार्थोंमें दमरू भीर अंकुश है। आप हाथ खोडत १६ पर्पकमा चार तारा भारागी दृष्टव्य है । मासन पर फुलेका बाहन अहित है। मूठे लम्बी है और गटा पहने है। ग्यालियर रिसायतके गंधापळ स्थानसेभी एक क्षेत्रपाल मूर्ति मिली। या निभग खती है-पैरोंमें कुत्ता बना है। सिरपर पंचसर्पफणमंडन यना है । देवगद्ध हिल के मंदिर नं. १ के सम्मुरा स्तम नं. २ पर अति सुंदर क्षेत्रपालकी मूर्ति पनी हुई है। वह दलिताधनमें पैठी है। यह क्षेत्रपालकी सर्व प्राचीन उपलब्ध दिगम्बर मूर्ति है। मारवाडके जोधपुरस्थ पार्श्वनायक श्वेताम्बरीय मंदिर में क्षेत्रपालकी मूर्ति दर्शनीय है। जैन उसकी गणना भैरव और योगिनियोंमें करते है। दिगम्बर प्रय अभिषेकक्रम में क्षेत्रपालके पांच नाम (१) विजयभद्र, (३) वीरभद्र, (३) मणिभद्र, (४) भैरय, (५) अपराजित मिलते हैं । इसका साम्य हिन्दुओं के देवता भरव-योगिनीसे हैं । क्षेत्रपालका रूप हिन्दू भैरव जैसा है। सभव है, हिन्दू देवताके आधारसे जैनौने क्षेत्रपालको माना हो। (१) किन्तु जैनों में क्षेत्रपालको पूजा माचीन कालसे प्रचलित है। -का..] २२१
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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