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________________ १९८ भ० महावीर-स्मृति-पंथ । अध्यायोंमें समयके शुभाशुभत्वका निरूपण कर सांसारिक प्राणियोंको चतुर वर्गके सेवनके लिये भागन मताका निरूपण किया गया है। ज्योतिपसारमें निरूपित विपयोंका कथन करते हुए लिखा है कि लोकिक शानको सम्पन्न करने के लिये निम्न बातोंका शान शास करना आवश्यक है। इनके शात हो जाने से व्यक्ति शिष्टजन समुदायमें अपने कृत्योंको सुन्दर दगसे सम्पन्न कर आदर प्राप्त करता है-- तिहि वार रिक्ख जोग, होडाचकम्मि रासि दिणसुद्धी । वाहण हंसो वच्छो, सिवयस्क जोगिणी यहो ।। मिगु कील परिध पंचग, सूलं रविचारु थिवर सन्चक । रवि राजकुमार जाला, सुभ असुमं जोग अभियाय ।। अधंयुहर कालवेलं कुलकं अवकुलकं कंटकं ओगं । ककडं यमघंटा यं, उपाय मिञ्च काण सिद्ध । खंजो यमल संवत्त, मूलं सत्तू य भसम दहाय! कालमुही वजमुसलं, भद्दा कुंभोइ जिमदाडं ॥ परजोग कालपास, छीया विजया य गमनं तारवलं । गह सिचिवस्था गुणसहि, भणियं बोलेहिं अगुफमसो ॥ अर्थात् तिथि, वार, नक्षत्र, योग, होडाचक्र, राशि, दिनदि, वाहन, इस, बस, शिवचक्र, योगिनी, राहु, मृगु, कीलक, परिध, पत्रक, शूल, रविचार, रिधरयोग, सर्वाकयोग, रवियोग, राजयोग, कुमारयोग, ज्वालामुखीयोग, शुभयोग, अशुभयोग, अमृतादियोग, अर्थप्रहर, कालवेला, कुलिक, उपकुलिक, कटकयोग, कर्कटयोग, यमघटकयोग, उत्पातयोग, मृत्युयोग, काणयोग, सिद्धयोग, खनयोग, यमलयोग, सवर्तकयोग, शूलयोग, शत्रुयोग, भस्मयोग, दध्योग, कालमुखीयोग, बस मुसलयोग, मैद्राफल, कुभचक्र, यमदाढचक्र, बरयोग, कालपाश, छींकफल, विजयमुहुर्त, गमनफल, ताराबल, नवग्रहचक्र और चन्द्रावस्था ये ५१ द्वार-प्रकरण इस ग्रन्थमें कहे जायगे । ज्योतिषके इन पारिभाषिक प्रकरणों के सम्बन्धमे ज्ञान प्राप्त कर लेने से सभी ज्यावहारिक कार्य अच्छे ढंगसे सम्पन्न किये जा सकेंगे । समयानुसार कर्ताकर्तव्योंका परिशान उपर्युक्त ज्योतिषककी चीजोंके ज्ञात हो जाने पर अवश्य हो जायगा । समयके शुभाशुभका जानना इस लिये आवश्यक है कि ससारके समस्त कार्यों पर इसका प्रभाव पड़ता है | भारतीय सस्कृति में इसी कारण समय विज्ञानको विशेषता प्रदान की गई है। जैन ज्योतिषके रचयिताओंन इसी कारण अपने समय विज्ञानवाले ग्रन्थोंमें समय शुद्धिक साधक और असाधन कारणोंका विस्तारसे वर्णन किया है। । मुहूर्त विषयके अलावा जन्मपत्र निर्माण, उसका फलादेश, वर्षपत्र एवं उसके फलादेशका चमत्कारपूर्व वर्णन जैन अन्योंमें है। मानसागरी में जन्मपत्रके बनानेकी और फल कहनेकी सारी विधियाँ सरलतापूर्वक रोचक ढगसे बताई गई हैं। इसी कारण आज यह ग्रन्थ समस्त जैना-जैन
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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