________________
१४
भ० महावीर-स्तृति-पंथ
जाने कितनी माताओंके लाल उनकी गोदीले जबर्दस्ती छीनेजाकर यज्ञ और युद्धोको वलिवेदीपर वलिदान कर दिये जाते हैं । न जाने कितने युवक और युवतियां वासनाओंके शिकार बनकर अपने जीवनको धूलमें मिला देते हैं । वे मांस के लिये दूसरोंके शरीरका हनन करते हैं, पर मांउ खा. कर स्वयं अपनी आत्मा की हत्या करते हैं । माउने सुरा, दुरासे सुन्दरी और सुन्दरीसे धनसंग्रहको वलती तृष्णासे साये नाकर दूसरोंको उचाते हैं। अतः जिन आध्यात्मिक शत्रुओंने मानवससारको
और मानवसारके द्वारा पशुजगत् को पीडित कर रक्ला है, उनसे मैं संसारको मुक्त करना चाहता हूं। लेकिन यह उन तक सभव नहीं, जबतक में अपनेको अनुओंसे मुक्त न करा सकू ।' ___ लोककल्याणकी इस भावनासे प्रेरित होकर महावीरने दुनियावी सुखोंका परित्याग किया
और बारह वर्षकी कठोर साधनाके द्वारा अनुक्ला नदी के किनारे जम्मक ग्रामसे आध्यात्मिक शत्रुओंसे मुक्त होकर परम आत्मज्ञानको प्राप्त किया । अव वे तीर्थकर हो गये और तीस वर्षतक उन्होंने समस्त भारतभूमिमें विहार करके उस सत्य जानका उपदेश दिया, तो उन्हें प्राप्त हुआ था। उनका प्रधान लक्ष्य सहिंसा था ! अहिंसा का पालन किये बिना न व्यक्ति सुखशान्ति प्राप्त कर सकता है और न समाज' यही उनका मूर-मन्त्र या.. किन्तु प्रश्न यह था कि महिला का पालन किस प्रकार किया बाय ? उसके लिये उन्होंने प्रत्येक गृहत्यको नीचे लिखे. मूल गुणों के पालनेका लादेश दिया था१- मास मत खाओ . .
. . . . २-~~ शराब मत पियो । - ३ -- मधु -- असंख्य मधुमक्खियों और उनके अण्डको निचोडकर प्राप्त किया गया मधु
मत खाओ। ४- किसी प्राणीको मत जाओ।
Noon! . . . . . , - मत बोलो। ६ - चोरी मत करो!
७ ~ अपनी विवाहिता पलीके सिवाय दुनियाको शेष स्त्रियोंको माता, बहिन और पुत्रीके तुल उमगे।
८- अपने दुटुम्ब पोषणके लिये आवश्यक धन-धान्यका संग्रह करो और उससे अधिकको इच्छा न करो।
अहिंशाके माचरणको शल्य और सरल बनाने के लिये महावीरने हिंसाको चार मागेमें १. नांगास्वादनलपत्न, देहिनो देहिनं मवि ।
हन्तु प्रपत्ते बुद्धि, शाकिन्य इव दुधियः । पान्यादि अन्य पारमा ततोऽपिकनिहता। पििनवरिप्रदलोदिच्छा परिणाम नामानि ॥६॥
निकरण्ड