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________________ पी० रामसिंहजी तोमर चारित्रिक दृढताभी उसी प्रकार कविने चित्रित की है। सागरदत्त और शिवकुमारकी मूल कथा एकसी है । शिवकुमारकी चारित्रिक दृढताका कविने औरभी अधिक स्पष्ट वर्णन किया है। तरुणियों के पास रहते हुएभी वह निरासक्त रहता है : पासडिओवि तरुणी णियरु, मण्णइ इवहि पुंजिउच्च वयाः ।। ३.९. धर्म मत्रीसुत द्वारा पारण करने के लिए अन्न भिक्षा माँग कर लानेका उलेख दोनोंही कृतियोंमें हुआ है। इसी सधिौ विद्युच्चर नामक चोरका प्रवेश कराया गया है, वसुदेवहिण्डिमें यह चोर प्रभव नामसे आता है और अंतमें जबूका शिष्य हो जाता है। जबूका चरित्र बिल्कुल स्वतत्र ढंगसे चित्रित हुआ है। समुद्रदत्त श्रेष्टिकी चार कन्याओंसे जबूका विवाह होता है। वसुदेवहिण्डिमें आठ सेठोंको आठ कन्याओंके विवाहका उल्लेख है। सबसे विचित्र प्रसंग वीर कविको कृनिमें जबूके पराक्रम दर्शनके प्रसंग है और जिनके आधार पर कविने अपनी कृतिको श्रृगार-वीर काव्य कहा है । चतुर्थ सधिमै उनके द्वारा एक भयकर मत्त हाथीके परास्त होनेकी कथा कही गई है। पाँचवी सधिमें जबू केरल जाते हुये दिखते हैं और वहाँ रत्नशेखर विद्याधरसे युद्ध करते हैं। यह युद्ध तीन सधियों, चलता है, वीर, बीभत्स, अद्भुत आदि कई प्रसग इस प्रकरणमें मिलते हैं। अतमें जबूका विवाह करलकी राजकुमारीसे होता है। आठवीं सधिौ पूर्वमवोंका सक्षिप्त वर्णन दुहराया गया है। फिर प्रस्तावित विवाइ पूरा होता है। विवाहोपरान्त जबूके हृदय, वैराग्य उत्पन्न होता है। अनेक आख्यान कहकर उनकी पत्नियाँ उन्हें समझाती है। इसी समय अर्द्धरात्रि में विद्या बलसे लोगोंको निद्रित करनेवाला तथा ताले खोलनेवाला चोर विद्युचर आता है। बड़े नाटकीय ढंगसे उसका प्रवेश कराया गया है। जबूकी माता अपना भाई कहकर जवूसे उसका परिचय कराती है। विद्युच्चर अतमें जबूका शिष्य हो जाता है । जबु, मातासहित प्रव्रज्या व्रत लेते हैं और पलियॉमी तपनत लेती है। विद्युच्चरका वर्णन अतिम सधिमें किया गया है। सभी स्वर्गको जाते हैं। वीरकी कृतिमें कथा ज्योंकी त्यों है, भाषा अपनश है, और काव्यात्मकता उसमें बहुत है। नागवसू, जबू , विद्युच्चरके चरित्रोंका चित्रण बहुत सफलतापूर्वक किया गया है। सरल काव्यात्मक अनेक वर्णन कृतिमें मिलते हैं। कृतिका रुप महाकाव्यका रूप है। रचयिता दिगवर सप्रदायके थे। अतः यह कथाकी एक धारा कही जा सकती है। जबूस्वामी चरित्रका तीसरा रूप हेमचद्राचार्यके परिशिष्ट पर्वमे मिलता है । पहिले जबूके पूर्वमोंकी कथा दी गई है और उसमे कोई अतर नहीं है। जबूका जन्म होता है और वीरकी कृतिक समानही जबका चार कुमारियोंसे विवाह होनेवाला था, उसी समय सुधर्मस्वामी आते हैं और जब आजीवन ब्रह्मचर्य पालनका व्रत ले लेते हैं । विवाह होनेके पश्चात् प्रभव और जबूका सवाद वसुदेवहिण्डिकोही समान है। जबू और पलियोंका सवाद वीरकी कृतिके समान है। अनेक कथा और आख्यानोंकी सष्टि हेमचद्रकी है । अतमें जब जबूकी पत्नियाँ सब प्रकारसे जवूको वैराग्य दीक्षाके लिए
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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