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________________ जंबूस्वामीचरित। (ले० श्री प्रो. रामसिंहली तोमर, एस. ए., शान्तिनिकेतन) नंबूस्वामीके मनोरम चरित्रमें अनेक जैन कृतिकारों को अपनी कल्पना के लिए पर्याप्त क्षेत्र मिग है। जबूस्वामी जैन सप्रदायमें अत्यत प्रतिष्ठित अतिम केवली माने जाते हैं। उनके पैराग्यपूर्ण जीवन की परिणतिको नाना फवियोंने नाना प्रकारसे वर्णित कर अपनी लेखनीको कृतकृत्य समझा है। प्रारम्भमें जंबूस्वामीका चरित्र कितने सरल और सक्षिप्त टैंगसे कवियोंने रचा था और क्रमशः उसका किस प्रकार विकास होता गया, कतिपय कृतियोंकी कथावस्तु पर विचार करनेसे स्पष्ट होगा। जिनरलकोषमें अनेक जंबूके चरित्रसे सबधित कृतियोंका उल्लेख किया गया है। सबसे पीछेका और जंबूकी कया का विकसित रूप स० १६३२ में रचित राजमालकविके जंबूस्वामीचरित को मान सकते हैं। वृकी कथा प्राकृत, सस्कृत और अपभ्रंश तीनोंही भाषाओंमें मिलती है । जबकी कथाका सबसे प्राचीन रूप निसमें कुछ साहित्यिकवामी है-वसुदेवहिण्डिमें प्राप्त होता है। वसुदे हिण्डि-प्राचीन जैन महाराष्ट्रीमें रचित सन् ई० की छठी शतीकी कृति है। इस महत्वपूर्ण कृतिक मारम्ममें संका चरित्र दिया गया है। यह प्रकरण बहुत सक्षिप्त है, इसकी संक्षिप्त क्या इस प्रकार है राजगृहके श्रेष्ठि ऋषभदासकी पत्नी धारिणीके जवू पुत्र थे। युवा होने पर सुधर्म स्वामीसे उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे आजन्म ब्रह्मचारी रहेंगे। वे अपने पितासे प्रव्रज्या लेनेका विचार प्रकट करते हैं। समी जेबूके निर्णयसे आश्चर्यमें पड़ जाते हैं। उनके पिता ऋषभदास उनसे विषयोका उपमोग कर लेने के पश्चात् सुधर्मस्वामीसे दीक्षा लेनेको कहते हैं। किन्तु जम्बू अनेक 'ष्टात देकर पिताको निरन्तर कर देते हैं। माताके कहने पर जवका आठ श्रेष्ठि कन्याओंसे विवाह हो जाता है। जंबूने इस बात पर विवाह किया था कि लमके पश्चादही प्रव्रज्या ले लेंगे। ___जब जिस समय वालगृहसे नवविवाहित वधुओं के साथ रात्रिको ये उसी समय विद्याबलठे ताले खोलनेवाला तथा लोगोंको निद्रित कर देनेवाला चोर प्रभव आया । जबूके कपर उस चोरकी किसी विद्याका प्रभाव नहीं हुआ क्योंकि वे प्रातःकाल सब कुछ त्याग कर प्रवज्या लेनेवाले ये और सुधर्म गणधरसे वे ससारविमोचनी विद्या ले चुके थे। प्रभव जबसे कुछ काल पर्यंत संसारके विलासी का उपभोग करके दीक्षा लेने को कहता है, जबू ससारके खनन के कर्मानुकूल विचित्र सबंधोका उलेख करके उसे समझाते हैं, जो एक जन्ममें माता है वही दूसरे जन्ममें पत्नी हो सकती है। प्रमा फिर कहता है कि विपुल घनका एक वर्षकी छै ऋतुओंमें उपभोग करके तव को प्रमज्या लेनी चाहिये। मबू उससे कहते हैं कि धनका उपयोग उचित पात्रको दान देना है, उपभोग नहीं । फिर प्रमय जंबूका लोक धर्म पालनकी प्रेरणा करता है और कहता है कि उन्हें पितृमण चुकाना चाहिये । सो
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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