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अखय संपति द्यो जिनरायजी ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्रायअक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्व० कमल चम्पक केतकि लीजिए,
मदन-भंजन भेट धरीजिए। परम शील महा सुखदाय हैं,
समर-सूल निमूल नशाय हैं । ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं सरस मोदन मोदक लीजिए,
हरन भूख जिनेश जजीजिए। सकल आकुल-अन्तक-हेतु हैं,
__ अतुल शांत-सुधारस देतु हैं । ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निविड मोह-महातम छाइयो,
स्व-पर-भेद न मोहि लखाइयो। हरन-कारन दीपक तास के,
_ जजत हों पद केवल भास के । ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं अगर-चन्दन आदिक लेयकें,
परम पावन गंध सुखेयकें । अगनि-संग जरै मिस धूम के,
सकल कर्म उड़े यह. घूमके ।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्रायअप्टकर्मदहनाय धूपं निर्व०