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बाहु बाहु जिन जगजन तारे,
करम सुबाहु बाहुबल दारे ॥१॥ जात सुजातं केवलज्ञानं,
स्वयंप्रभू प्रभु स्वयं प्रधानं । ऋषभानन ऋषि भानन दोषं,
__ अनन्तवीरज वीरजकोपं ॥२॥ सौरीप्रभ सौरीगुणमालं,
सुगुण विशाल विशाल दयालं । वज्रधार भवगिरि वज्जर हैं,
चन्द्रानन चन्द्रानन वर हैं ॥३।। भद्रबाहु भद्रनिके करता,
श्रीभुजंग भुजंगम हरता । ईश्वर सबके ईश्वर छाजें,
नेमिप्रभु जस नेमि विराजें ॥४॥ वीरसेन वीर जग जाने,
महाभद्र महाभद्र बखाने । नमों जसोधर जसधरकारी,
नमों अजित वीरज बलधारी ॥५॥ धनुष पांचस काय विराजें,
आव कोडिपूरव सब छाजै । समवसरण शोभित जिनराजा,