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बीस तीर्थकर पूजा
[ कविवर द्यानतरायजी ]
दीप अढाई मेरु पन सब तीर्थंकर बीस । तिन सबकी पूजा करूँ मन वच तन धरि सीस ||१|| ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः अत्र अवतर अवतर संवौपद् । ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः ! अत्र मम सन्निहिता भव भव वपट् ।
इन्द्र फणीन्द्र-नरेन्द्र वंद्य पद निर्मल धारी । शोभनीक संसार सार गुण हैं अविकारी ॥ क्षीरोदधि सम नीरसों (हो) पूजों तृपा निवार । सीमंधर जिन आदि दे वीस विदेह मंझार ॥ तारणतरण जहाज ||१|| ॐ ह्रीं सीमंधर- युगमन्धर - बाहु- मुबाहु -संजात स्वयंप्रभ-वृपभानन - अनन्तवीर्य-सुरप्रभ - विशालकीर्ति - वज्रधर - चन्द्राननभद्रबाहु भुजङ्गम-ईश्वर-नेमिप्रभ - वीरपेण- महाभद्र - देवयशोऽ जितवीर्याश्चेतिविंशति विद्यमानतीर्थङ्करेभ्यो जन्मजरामृत्यु
श्रीजिनराज हो भव
विनाशनाय जलं निवं० ।
तीन लोक के जीव पाप आताप सताये । तिनकों साता दाता शीतल वचन सुहाये | बावन चंदन सों जजूं (हो) भ्रमन तपन निरवार || सीमं ० ॥
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