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अचलकीति आचारज कहै । याको पढ़ो सनो सब कोय,
मनवांछित फल निश्चय होय ॥४१॥
दोहा भय भञ्जन रञ्जन जगत, बिषापहार अभिराम । संशय तज सुमिरो सदा, श्री जिनवर को नाम ॥४२॥
श्री गोम्मटेश संस्तवन शत-शत बार विनम्र प्रणाम !
विकमिन नील कमल दल मम हैं जिनके मुन्दर नेत्र विशाल । शरदचन्द्र शरमाता जिनकी निरख शांत छवि, उन्नत भाल । चम्पक पुष्प लजाता लख कर ललिन नासिका सुपमा धाम । विश्ववंद्य उन गोम्मटेश प्रति शन-शत बार विनम्र प्रणाम ।।१।। पय सम विमल कपाल, झूलते कणं कध पर्यत नितान्त । सौम्य, सातिशय, सहज शांतिप्रद वीतराग मुद्राति प्रशांत । हस्तिशुंड सम सवल भुजाएं बन कृतकृत्य करें विश्राम । विश्वप्रेम उन गोम्मटेश प्रति शत-शत बार विनम्र प्रणाम ॥२॥ दिव्य संख मौंदर्य विजयिनी ग्रीवा जिनकी भव्य विशाल । दृढ़ स्कंध लख हुआ पराजित हिमगिरि का भी उन्नन भाल । जग जन मन आकर्षित करनी कटि मुपप्ट जिनकी अभिराम । विश्ववंद्य उन गोम्मटंग प्रति गन-गत वार विनम्र प्रणाम ।।३।।