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तुम सूरज उदकाघट जास,
संशय शीत न व्यापे तास । जीवे दादुर वर्षे तोय,
सुन वाणी सरजीवन होय ॥१४॥ तुम बिन कौन कर मुझ पार,
तुम कर्ता-हर्ता किरपाल ।१५॥ शरण आयो तुम्हरी जिनराज,
अब मो काज सुधारो आज । मेरे यह धन पूंजी पूत,
साह कहै घर राखो सूत ॥१६॥ करौं वीनती बारम्बार,
तुम बिन कर्म कर को क्षार ॥१७॥ विग्रह ग्रह दुख विपति वियोग,
और जु घोर जलंधर रोग । चरण कमल रज टुक तन लाय,
कुष्ट व्याधि दीरघ मिट जाय ॥१८॥ मैं अनाथ तुम त्रिभुवननाथ,
मात-पिता तुम सज्जन साथ । तुम-सा दाता कोई न आन,
और कहाँ जाऊँ भगवान ॥१६॥ प्रभुजी पतित उधारन आह,