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साढ़े बासठ सहस ऊंचाई, वन सुमनस शोभे अधिकाई । चैत्यालय चारों मुखकारी, मनवचतन बंदना हमारी ॥४॥ ऊँचा जोजन सहम छत्तीसं, पांडुकवन सोहै गिरि सीमं । चैत्यालय चारों मुखकारी, मनवचतन बंदना हमारी ।।।। चारों मेरु समान बखाने, भूपर भद्रसाल चहुँ जाने । चैत्यालय सोलह मुखकारी, मनवचतन बंदना हमारो॥६॥ ऊँचे पांच शतक पर भाखे, चारों नन्दनवन अभिलाखे । चैत्यालय सोलह मुखकारी, मनवचतन बंदना हमारी।।७।। साढ़े पचपन महम उतंगा, वन सौमनस चार बहुरंगा । चैत्यालय सोलह मुखकारी, मनवचतन बंदना हमारी॥८॥ उच्च अठाइस सहम वताये, पांडुक चारों वन शुभ गाये। चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनवचतन बंदना हमारी ।।६।। सुर नर चारन बंदन आवै, सो शोभा हम किह मुख गावें। चैत्यालय अस्मी मुखकारी, मनवचतन बंदना हमारी॥१०॥
दोहा पंचमेरु की आरती, पढ़े सुनै जो कोय ।
'द्यानत' फल जाने प्रभू, तुरत महामुख होय ।।११।। ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचंत्यालयाजनबिम्बेभ्यो अर्घ निर्व.
[इत्याशीर्वाद]
नन्दीश्वरद्वीप-पूजा
[कविवर द्यानतरायजी] सरव पर्व में बड़ो अठाई परव है । नंदीश्वर मुर जांहि लेय वमु दरव है ॥