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कंचन थाल मांहि धर लायो,
अरचत ही पाऊँ शिवनार ॥शां० ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वः
जल फलादि वसु द्रव्य संवारे, अर्घ चढ़ाये मंगल गाय । 'बखत रतन' के तुम हो साहिब,
दीजे शिवपुर राज कराय ॥शां० ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्व०
पंचकल्याणक भादव सप्तमि श्यामा, सर्वार्थ त्याग नागपुर आये। माता ऐरा नामा, मैं पूजू अर्घ शुभ लाये ।। ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय भाद्रपदकृष्णसप्तम्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जन्मे श्रीजिनराजा, जेठ असित चतुर्दशी सोहै । हरिगण नावें माथा, मैं पूजू शान्ति चरण युग जो है ॥ ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय ज्येष्ठकृष्णचतुर्दशी जन्मकल्याणकप्राप्ताय अर्घ निर्वपामोनि स्वाहा। चौदश जेठ अंधेरी, कानन में जाय योग प्रभु लीन्हा । नवनिधि रत्न सुछारी, मैं वंदूं आत्मसारजिन्ह चीना ॥