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रणवंका रजपूत ।
याचक आते छुपे न दाता, यह तो घुस के छुपा महल में, कायर जात कपूत रे । स । २४४ | जोश चढ़ाया नमिराय ने, सेना हो गई अधम राय को दंडेंगे हम, खोया क्षत्रिय-नूर
हमारे
रे । स । २४८ ।
रे । स । २४६ ।
भराया
कायर से किला नहीं शोभे, शोभे इसे तोड़ के पुर में जाके, बदला लेंगे युद्धवीर तुम युद्ध सिखावो, शत्रु को परजा जन को अपने समझे, मत उपजाओ उनका धन तो धूल समाना, नारी भगिनी मात । रक्षा करना सब संतति की, क्षत्रियत्व की बात हृदय वीर का दया आर्द्र है, सब जन मंगल गाय । राजनीति का परिचय देके, सब को देवो जगाय नमिराय के नीति-बोध को, सब ने शीश किला तोड़ने की तैयारी, मन में जोश सती साध्वी संयम धारी, नृप के नजर कौतुक पाया शीश नवाया, युद्ध में कैसे सूरत तुम्हारी संयमधारी, यहां तो मच रहा द्वन्द्व । दुनिया का यह अजब फंद है, जिसमें होता बंध रे । स । २५२ । सत्यप्रिय होते हैं त्यागी, झूठ का करते नाश । किस कारण यह युद्ध मचा है, कहो कारण तुम खास रे । स । २५३ । तुम त्यागी हो महासती जी, मत पूछो यह बात । सुख सिधावो जिन-गुण गावो, करो मोक्ष का साथ रे । स । २५४ । अज्ञान अंधेरा जग में मोटा, जिससे भूले भान । सुनो बात तुम ध्यान लगाकर, जिससे पावो ज्ञान मैं हूं तुम्हारी माता राजा, दोनों मेरे पूत । अथ से इतितक कहा सती ने बीतक साथ सबूत रे |स | २५६ ।
रे । स । २५५ ।
दोनों भाई बीच ।
रुधिर का कीच रे । स । २५७ ।
अनरथ होते जब मैं जाना, एक दूसरे का होता घाती, मचे निज गुरुणी की आज्ञा लेके, आई तुम्हारे पास । शान्ति स्थापना हेतु हमारा, और नहीं कुछ आश रे ।स। २५८ ।
चुकाय
धर
शूर ।
रे । स । २४५ ।
राय ।
रे । स । २४६ |
धीर ।
पीर रे । स । २४७ ।
चढाया ।
आई
रे । स । २५० ।
आई ।
रे । स । २५१ ।