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महत्त्वपूर्ण है। वे अन्य राजाओं के समान ही नहीं लेकिन कुछ राजाओं से अधिक योग्यता और साहसपूर्वक राज्य संचालन करती रहीं और युद्धादि के समय वीर अभिनेत्री वनती थीं । वीरता में भी स्त्रियां पुरुषों से कम नहीं। यद्यपि वे स्वभावतः कोमलहृदया होती हैं पर समय पड़ने पर वे मृत्यु के समान भयंकर भी हो सकती हैं। रानी दुर्गावती और लक्ष्मीबाई उदाहरण भारतवर्ष में अमर रहेंगे । त्याग और बलिदान की भावना उनमें पुरुषों से अधिक ही होती है। वे प्रथम तो अपना सर्वस्व ही पतिदेव को समर्पण कर विवाह करती हैं तथा साथ ही साथ अपनी इज्जत बचाने के लिए वे प्राण तक बलिदान कर सकती हैं। पद्मिनी आदि चौदह हजार रानियों का हंसते-हंसते आकाश को छूती हुई आग की लपटों में समाकर सती होना क्या विश्व के समक्ष भारतीय नारी के त्याग और बलिदान का ज्वलंत उदाहरण नहीं ?
महारानी एलिजाबेथ और महारानी विक्टोरिया ने भी अपनी सुयोग्यता द्वारा सफलतापूर्वक इतने बड़े राज्य का संचालन किया। अगर शारीरिक दृष्टि से स्त्रियां शक्तिहीन होती तो किस प्रकार वे इतना बड़ा कार्य कर सकती थी? वास्तव में स्त्रियों का उचित पालन पोषण तथा शिक्षा होनी चाहिए। राजघराने की महिलाओं को ये सब वस्तुएं सुलभ होती हैं। वातावरण भी उन्हें पुरुषों जैसा प्राप्त होता है, फलतः वे भी पुरुषों के समान योग्य होती हैं। साधारण नारी को चूल्हे और चक्की के सिवाय घर में कुछ प्राप्त नहीं होता, अतः उनकी योग्यता और शक्ति वहीं तक सीमित रह जाती है ।
शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टियों से स्त्रियों और पुरुषों की शक्ति बरावर ही होती है। हर एक कार्य को स्त्रियां भी उतनी ही योग्यता से कर सकती हैं, जितना कि पुरुष । यह नहीं कह सकते कि जो कार्य पुरुष कर सकते हैं, उन्हें स्त्रियां कर ही नहीं सकती । अभ्यास प्रत्येक कार्य को सरल बना देता है । यद्यपि समाज की सुव्यवस्था के लिए दोनों के कार्य सुचारु रूप से विभाजित कर दिए गए हैं पर इसका अभिप्राय यह नहीं कि स्त्री किसी अपेक्षा से पुरुषों से कम है या जो कार्य पुरुष कर सकते हैं, वे कार्य स्त्रियों द्वारा किए ही नहीं जा सकते। शरीर-रचना-शास्त्र के अनुसार बहुत से लोग यहां तक भी सिद्ध करने का साहस करते हैं कि स्त्री तथा पुरुष के मस्तिष्क में विभिन्नता है । स्त्री की अपेक्षा पुरुष का मस्तिष्क विशाल होता है । पर यह कथन सर्वथा उपयुक्त नहीं। इस कथन के अनुसार तो मोटे आदमियों का मस्तिष्क हमेशा भारी ही होना चाहिए। पर यह तो बहुत हास्यास्पद और असत्य है । हम निजी अनुभव से ही देख सकते हैं कि मोटे आदमी भी बहुत बुद्ध और मूर्ख होते हैं, तथा दुबले पतले दिखने वाले भी अधिक बुद्धिमान और बड़े मस्तिष्क वाले होते हैं।
स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर तक ही सीमित रखने के लिए जिस प्रकार उनकी शारीरिक कमजोरी बताई जाती है उसी प्रकार उनकी मानसकि कमजोरी को भी उनकी अज्ञानता का कारण बताया जाता है । उनको पुरुष समाज सदियों तक घर में, परदे में और घूंघट में रखता रहा और आज यह तर्क दिया जाता है कि उनमें से कोई भी बड़ी राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, वैज्ञानिक नहीं हुई, अतः उनमें कोई मानसिक न्यूनता है। उनसे यह आशा रखी जाती है कि चक्की पीसते -पीसते वैज्ञानिक बन जाएं, खाना बनाते-बनाते दार्शनिक हो जाएं पति की ताड़ना सहते-सहते राजनीतिज्ञ हो जाएं! जहां बिल्कुल शिक्षा का प्रचार ही नहीं और स्त्रियों को घर से बाहर नहीं निकाला जाता, वहां ये सब बातें कैसे सम्भव हैं ?
मानसिक कमजोरी का तर्क तब युक्तिपूर्ण हो सकता है, जब एक स्त्री प्रयत्न करने पर भी उस क्षेत्र में भी कार्य करने के योग्य न हो सके। पर ऐसा कहीं भी देखने में नहीं आता। स्त्रियां शिक्षित होने पर हर एक बड़ी सफलतापूर्वक कर सकती हैं। जिस गति से भारत में स्त्रीशिक्षा बढ़ रही है, उसी गति से महिलाएं प्रत्येक