________________
के जीवन और दर्शन को समझने-समझाने का उपक्रम अनेक प्रवुद्ध लेखकों द्वारा विविध लेखों के माध्यम से किया गया है।
स्मारिका के द्वितीय खण्ड में 'श्री जवाहर विद्यापीठ, भीनासर' के संस्थापक सदस्यों-स्व. भैरोंदानजी सेठिया एवं स्व. चम्पालालजी वांठिया की रचनात्मक वृत्तियों तथा समाजोपयोगी प्रवृत्तियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इस परिचय के अनन्तर विगत ५० वर्षों की संस्था की गतिविधियों और उपलब्धियों की जानकारी भी दी गयी है। तृतीय खण्ड विज्ञापन-खण्ड है।
सम्पादक मण्डल स्मारिका हेतु आलेख एवं कविताएं भेजने वाले लेखकों/रचनाकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है साथ ही अर्थ सहयोगियों एवं विज्ञापनदाताओं के प्रति भी आभार प्रदर्शित करता है। इसी क्रम में सांखला प्रिण्टर्स, बीकानेर के व्यवस्थापक श्री दीपचन्द सांखला का उल्लेख विशेष रूप से करना चाहेंगे जिन्होंने अत्यन्त अल्प समय में कई प्रकार की प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद भी बड़ी तत्परता से एवं बड़े आकर्षक रूप में इस स्मारिका को प्रकाशित किया है। एतदर्थ इनके आभारी हैं। यहां हिन्दी, राजस्थानी एवं जैन साहित्य के अनन्य विद्वान डॉ. नरेन्द्र भानावत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना भी अप्रासंगिक नहीं है, जिन्होंने स्मारिका की परिकल्पना की थी परन्तु असामयिक एवं आकस्मिक निधन हो जाने से इसे मूर्त रूप न दे सके।
पुनश्च आभार उन सभी ज्ञात-अज्ञात सहयोगियों के प्रति जो किसी भी रूप में इस नयनाभिराम प्रकाशन के सहयोगी बने हैं।
१ मई, १६६४
डॉ. किरनचन्द नाहटा उदय नागोरी जानकीनारायण श्रीमाली