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साहसपूर्वक प्रारम्भ किया। उस समय यह नवाचार करना असाधारण साहस का कार्य था। प्रवल विरोध भी हुआ किन्तु आप दृढ़ रहे, जिसका सुपरिणाम और सुफल आज विद्वद्वर्य साधु समाज के रूप में देश को प्राप्त हो रहा है।
- युवाचार्य पद महोत्सव—आचार्य श्री श्रीलालजी म.सा. ने आपश्री को युवाचार्य बनाया और आपने इस दायित्व को आज्ञारूप में ही स्वीकार किया। आचार्यश्री से रतलाम में प्रत्यक्ष भेंट के बाद ही आपने यह पद स्वीकारा । वि.सं. १६७५ चैत्र कृष्णा ६ दिनांक २६ मार्च १६१६ को आपश्री ने सहज विनय के साथ युवाचार्य पद की चादर ग्रहण की। इस अवसर पर आपने कहा कि मैं 'एक अकिंचन सेवक ही रहूंगा।' यह आपकी विनय का आदर्श था।
आचार्य पद-भीनासर में आपको आचार्य श्री श्रीलालजी के देहावसान का समाचार मिला। आपने श्रावकों के करुण आग्रह पर ही ८ दिन का उपवास पूर्ण किया। जैतारण मारवाड़ में वि.सं. १९७६ आषाढ़ शुक्ला ३ को आप आचार्य पद पर आरूढ़ हुए। आपका आचार्य काल राष्ट्रधर्म, युगधर्म और समाजोन्नति के भागीरथ प्रयासों की एक प्रेरक कहानी है।
आपकी प्रेरणा से सन् १६२० के क्रांतिकारी दिनों में श्री श्वेताम्बर साधुगार्गी जैन गुरुकुल के नाग से शिक्षण की एक महत्वाकांक्षी योजना सगाज प्रमुखों ने बनाई।
खादी–देश महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य से जूझ रहा था। खादी और स्वदेशी के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना मुखरित हो रही थी। आप श्री ने मिल के कपड़े में चर्ची लगने से उन्हें त्याज्य बताया और स्वयं खादी धारण की । आपकी प्रेरणा से देशभर में जैनधर्गानुयायियों व अन्यों ने भारी संख्या में आजीवन खादी धारण की। आपके रतलाग प्रवेश के समय वहां के सेठ श्री वर्धमानजी पीतलिया ने आपश्री के खादी के कारण गिरफ्तार होने की आशंका प्रकट की; आप मुरकराए। रतलाम नरेश जब आपका प्रवचन सुनने पधारे को उनमें महान् परिवर्तन आया और उन्होंने अनेक जनहितकारी कार्य किए।
अहमदनगर तथा सतारा प्रवास में आपने वहां के दुर्भिक्ष पीड़ितों की सहायता हेतु श्रेष्ठी वर्ग से आह्वान किया। फलतः जागरूक श्रावकों ने राहत की एक बड़ी योजना तैयार कर लागू की। आपकी 'मानव कर्त्तव्य' की भावपूर्ण व्याख्या से जनता के नेत्रों से आंसुओं की धारा वह निकली।
राष्ट्र सेवा-आपके पूना विहार के समय 'प्रान्तीय राजद्वारी परिपद्' के सदस्य राष्ट्रीय पताकाएं लेकर एक जलस के रूप में आपश्री की सेवा में उपस्थित हुए। इस अवसर पर आपने राष्ट्र सेवा, मादक द्रव्य निषेध तधा मिल के वस्त्रों की अपवित्रता पर ओजरवी हदयस्पर्शी प्रवचन दिया जो आपके प्रखर राष्ट्रवाद की स्वाभाविक अभिव्यक्ति थी। नान्दी में आपश्री ने व्याजखोरी के विरुद्ध प्रभावी उपदेश दिया, जिस पर वहां के गहाजनों ने व्याज लेने के नियम निर्धारित किए। घाटकोपर बम्बई चौगासे में आपश्री की प्रेरणा से जीवदया खाते की स्थापना हई। माटुंगा की झुग्गी-झोपड़ियों की दशा देख आपने अछूतोद्धार और गानव एकता पर प्रभावी प्रवचनों से अपूर्व जागति पैदा की। अपने जलगांव चौगारो में आपने भागीरथ मिल में गालिकों और गजदूरों की संयुक्त सभा में मजदूरों की दुर्दशा का कारुणिक चित्र और गालिकों के सुविधा भोगी जीवन की तुलनापूर्वक चेतावनी के स्वर गुंजाए।