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बालक जवाहरलाल मां और पिता से वंचित हो अपने मामा के यहां रहने लगे। प्रतिछित व्यवसायी गामा ने वहिन की धरोहर को प्यार से सहेज कर रखा। श्री जवाहरलाल जी को विद्यालय में भरती कराया गया। वे पढ़ाई के साथ-साथ चैतन्य मन से, खुली आंखों से प्रकृति की पाठशाला के भी जिज्ञासु विद्यार्थी बन गए। वे अपने परिवेश में विखरे प्रकृति के रन-कणों को समेटने लगे। प्रकृति से एकात्म होने में उन्हें अमित आनन्द प्राप्त होता था।
___ आपकी जन्मभूमि थांदला यद्यपि मालवा में है किन्तु गुजरात का पड़ौसी है। अतः आप गुजराती भाषा, भूपा और संरकारों के सिद्धहस्त ज्ञाता भी सहज ही बन गए। गुजराती समाज की सुसंघटना और संस्कार प्रणाली ने आपके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला जो कालान्तर में आपकी यशस्विता की एक महनीय आधारभूमि सिद्ध हुआ।
ईसाई शिक्षा पद्धति—आपको बाल्यकाल में आदिवासी अंचलों में स्थापित ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित पाठशाला में पढ़ाने के लिए भरती किया गया। आपके सुसंस्कारी मन पर ईसाई पाठशाला के संस्कार जम न सके। आप मात्र गुजराती व हिन्दी भाषा तथा गणित आदि प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर स्कूल के नीरस वातावरण से निकल कर प्रकृति के सरस वातावरण के जिज्ञासु विद्यार्थी बन गए। कालान्तर में धर्मप्रचार के अपने महाअभियान में उन्हें वाल्यकाल की धार्मिक आधार पर संचालित विद्यालय योजना के अनुभव ने अनेकानेक सफल शैक्षिक प्रयास व प्रयोग करने की प्रेरणा दी। वे भारत में धुर ग्रामीण क्षेत्रों में धर्मान्तरण प्रयासों से पूर्ण तः परिचित थे ।
जवाहरलालजी में विपदाओं से भयभीत न होने और उन पर विजय प्राप्त करने का भाव बाल्यकाल से ही प्रवल था। सच तो यह है कि मां और वाप को असमय छीन कर प्रकृति ने उन्हें विपत्तियों से स्वयं अठखेलियां करने के लिए छोड़ दिया था और उन्होंने इस कसौटी पर स्वयं को खरा सिद्ध किया। उनके बचपन की कुछ घटनाएं विशेष रूप से उनके साहस और सूझ बूझ को प्रदर्शित करती हैं। ये घटनाएं बालकों के लिए प्रेरक भी हैं।
एक बार आप अपने कुछ वाल सखाओं के साथ बैलगाड़ी पर यात्रा कर रहे थे। ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर दौड़ते बैलों के हिचकोलों से वैलगाड़ी डगमगा रही थी। उसके बड़े बड़े पहिये पथरीले मार्ग पर धड़ाम-धड़ाम गिर कर भावी अनिष्ट की सूचना दे रहे थे। पथ के एक ओर पहाड़ तथा दूसरी ओर गहरी खाई। बैल अनियंत्रित होने लगे। भयभीत वालक वैलगाड़ी से कूदकर भागे और यहां तक कि गाड़ीवान भी आसन्न मृत्यु-भय से आतंकित हो अपनी गाड़ी और जीविका के साधन वैलों को मौत के कगार पर असहाय छोड़ कर गाड़ी से कूद पड़ा। मौत नाच रही थी किन्तु बालक जवाहर ने साहस नहीं खोया। उन्होंने आगे बढ़कर वैलों की रास सम्हाली और अचल-अभीत भाव से उन्हें शनैः शनैः नियन्त्रित किया। गाड़ी और बैलों सहित सुरक्षित अपने गन्तव्य पर पहुंचे। इस दिल दहलाने वाले दृश्य का स्मरण भी भय की झुरहरी पैदा करता है पर बाल जवाहर के दर्पपूर्ण, सस्मित आनन के विजय उल्लास का चिन्तन हमारे मनों में हर स्थिति में कर्तव्यपथ पर डटे रहने का भाव जगाता है।
विश्वास की शक्ति–बालक जवाहर ने धरण ठीक करने का मंत्र सीख लिया था और वह अपने पास आने वाले प्रत्येक पीड़ित का कष्ट हरण करने को सदैव उद्यत रहते थे। गांवों में शारीरिक श्रम करते समय थोड़ा सा पैर चूकने या अधिक भार उठाने आदि के कारण धरण पड़ने की अत्यधिक घटनाएं होती हैं। जवाहरलाल जी प्रसन्न मन और वदन से सभी का मंत्र से उपचार करते थे। अभी उनकी आयु ११ वर्ष की थी और वे मामाजी के साथ वस्त्र-व्यवसाय सीख रहे थे। वे नियमित रूप से दुकान पर बैठ कर मामाजी के काम में हाथ बंटाते थे और उनका सहयोग करते थे। एक बार ग्राहकी के समय एक व्यक्ति ने दुकान पर जवाहरलाल जी से धरण ठीक करन