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आध्यात्मिक राष्ट्र-नायक
9 भंवरलाल कोठारी
युगद्रष्टा, युगस्रष्टा, परम-प्रतापी श्रीजवाहराचार्य इस युग की एक महान विभूति थे। वे तेजस्वी व्यक्तित्व, ओजस्वी वाणी और प्रखर साधना के धनी थे। वे जैन जगत् के ज्योतिर्धर जवाहर तो थे ही भारतीय संत मनीषा के जाज्वल्यमान चिन्तामणि रत्न थे। आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत राष्ट्र-नायक थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, राष्ट्र-जागरण का, देश को स्वाधीन-स्वावलंबी बनाने का जो कार्य राजनैतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय स्तर पर कर रहे य; आत्मचेता जवाहराचार्य ने वही कार्य जन-जन की चेतना जगाकर आध्यात्मिक स्तर पर किया था। उन्होंने मशीनों से वने चर्बीयुक्त महाआरम्भी मील के विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने और हाथ-कते हाथ-बुनें अल्पारंभी खादी व स्वदेशी का उपयोग करने की जन-जन को प्रेरणा दी। स्वदेशी के संबंध में सन् १६२० में उन्होंने यह उद्घोषणा की—'तुम जिस देश में जन्मे हो, जहाँ के अन्न, जल और वायु से तुम्हारे शरीर का पालन-पोषण हुआ ७, उसी देश में उत्पन्न होने वाली वस्तुओं के अतिरिक्त दूसरी वस्तुओं का तुम्हें त्याग करना चाहिये। उस वस्तु से पुन्हारा जीवन निर्वाह सरलता से हो सकेगा और साथ ही तुम महाआरम्भ से भी बच जाओगे।' स्वरूप एवं स्वभाव में रमण करने वाले आत्म-साधक जवाहराचार्य खादी को अहिंसक वस्त्र मानते थे। इसीलिए हिंसा-त्याग की भावना से उन्होंने स्वयं चर्बी लगे मिल के वस्त्रों का त्याग किया और देश के दिग-दिगन्त तक फैले हुए सहस्त्री राहस्र अनुयाइयों को भावपूर्वक त्याग करवाया।
महात्मा गांधी की ही तरह जवाहराचार्य ऊँच-नीच, अस्पृश्यता के प्रखर विरोधी और सामाजिक सता, समता के प्रवल समर्थक थे। नासिक प्रवास के समय सन् १६२३ में अपने प्रेरक प्रवचनों में उन्होंने
उठेगी। तुम्हारी संस्कृति धूल है, देश और जाति को दुर्बल बन
'शूद्र आपके समाज की नींव हैं। महल का आधार नींव है। नींव में अस्थिरता आ जाने से महल स्थिर ह सकता। अगर तुम ने शूद्रों को अस्थिर कर दिया –विचलित कर दिया तो तुम्हारे समाज की नींव हिल तुम्हारा सस्कृति धूल में मिल जायगी।'......'अन्त्यजों के प्रति दुर्व्यवहार करके आप धर्म का उल्लंघन करते
जाति को दुर्बल बनाते हैं, अपनी शक्ति को क्षीण करते हैं और अपनी ही आत्मा को गिराते हैं।'' अस्पृश्यता पर इतना करारा प्रहार कोई निस्पृह राष्ट्र-संत ही कर सकता था। उन्नायक जवाहराचार्य स्वाधीनता के उदघोषक थे | बन्धन-मुक्तता के लिए स्वभाव स्थिति आवश्यक
। रमण कर सकता है जो स्वाधीन हो—'स्व' के अधीन हो। देश उस समय पराधीन था। अंग्रेजों । आजादी का आन्दोलन जोरों पर था। प्रायः सभी राष्ट्रीय नेता जेलों में वन्द थे। पूज्य श्री अपने
है। स्वभाव में वही रमण कर सकता
शासन था। आजादा