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सा अतएव यह आवश्यक है कि ग्राम-स्थविर अपनी ही मर्यादा में रहकर ग्राम-सुधार का कार्य करे दिर नगर की सुव्यवस्था की ही और ध्यान दें।
यहां पर जैन-दर्शन का स्पष्ट मन्तव्य है कि प्रत्येक धर्म दूसरे धर्म का संपूरक वनकर काम एक दूसरे में हरतक्षेप करके उसी इकाई को असंतुलित बनाने का कार्य करे, नहीं तो उपरोन प्रमों में नको असंतुलित बनाने से उसकी पूरी श्रृंखला पर प्रतिकूल असर पड़े बिना नहीं रहेगा।
आचार्य प्रवर ने आवश्यक वातों पर चेतावनी दिलाते हुए कहा है कि प्रत्येक धर्म के विधि अनुसार अर्थात् जिस धर्म का प्रयोग किया गया है उसी अर्थ में शब्द को ग्रहण करके धर्म को राज प्रचार-प्रसार करने में कोई कठिनाई नहीं आती है, तथा इस प्रकार जीवन की बुनियादी संरचना का रखते हुए मूलभूत संस्कृति को सुरक्षित किया जा सकता है तथा संविधान में वर्णित 'सेकुलर' मात्र को जिस धर्म निरपेक्षता' के अर्थ में अनुवाद करते हैं उस आपत्ति को मिटाकर विभिन्न उपासना पनि वा अनुचित हस्तक्षेप को राज-प्रणाली से पृथक् किया जा सकता है।
आचार्य प्रवर द्वारा प्रतिपादित प्रभु ऋषभदेव की उपरोक्त स्थापित व्यवस्था को कौन सा घi ir नहीं करता कि दुनिया की कौन सी शासन व्यवस्था समर्थन नहीं करती, किस संविधान में इस व्वदल्याक नही है ? कौन सा धर्मनेता या राजनेता उपरोक्त व्यवस्था को नकारता है ?
परन्तु लोगों की धर्म के स्वरूप पर इतनी अनभिज्ञता है कि उन्होंने धर्म को मान उपासना पानी ___ अर्थ में ग्रहण किया है और उसे इहलौकिक धर्म से भिन्न भी नहीं समझा है। आवश्यकता है. आलमर्ग में
को जोड़ने की।