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रूढ़िमुक्त समाज के प्रेरक
0 ओंकारश्री
धर्म क्षेत्र के लोकनायक थे जवाहराचार्यजी म.सा. । मर्यादाओं की कठोर पालना के बीच वे रहे निर्भीक—सदा बोले सटीक – लीक पीटी नहीं । साधुवर्ग व श्रावक संवर्ग में ही नहीं आम तौर पर समाज में व्याप्त रूढ़ परम्पराओं कुरीतियों व कुप्रथाओं का उन्मूलन करने में शताब्दियों की जड़ता तोड़ी युगाचार्य जवाहराचार्यजी
ने ।
स्वदेशी वस्त्र क्रान्ति
चिर ऋणी रहेगा भारत देश उनका कि उन्होंने जैन साधु सम्प्रदाय में, अपने समय में स्वदेशी आंदोलन की मुक्ति मुहीम को आगे बढ़ाते हुए खादी भेष स्वयं धारा और इस खद्दर परिधान परिवेश को प्रचलित किया साधु-श्रावकवर्ग में। न केवल जैन साधु ही बल्कि देश के विभिन्न साधु सम्प्रदायों में रेशमी परिधान का बोलबाला था जूने जमाने में। ग्रंथों तक को रेशमी वस्त्रों की लपेट चपेट में देख क्रान्तिचेता जवाहराचार्य की करुणा जागी कि इन रेशमी परिधानों में कारण असंख्यों कीटों की हत्या-हिंसा ओढ़े हुए है यह रूढ़ समाज । यह वस्त्र-रूढ़ि मुक्ति की क्रान्ति उस दकियानूस युग में। बहुत बड़ी बात थी ।
अछूतों द्धार का उद्घोष
भारतीय समाज के पतन का प्रथम कोई कारण था और है तो छुआछूत की भावना, रूढ़ि का पापाचार । आचार्य श्री से किसी ने पूछा एक बार
'आचार्य देव ! जैन धर्म तो जातिवाद को नहीं मानता फिर आप लोग हरिजनों की बस्ती में पधार कर गोचरी क्यों नहीं लेते? बहुत तीखा । सीधा और चुटीला सवाल था यह । पर जननायक जवाहर की वाणी और व्यवहार कभी पराजित हुआ ही नहीं ऐसे संक्रमण पूर्ण अवसरों पर । उन्होंने उत्तर देकर पूरे जमाने को निरन्तर कर दिया - वे बोले – प्रश्रकर्ता से
‘तुम ठीक कहते हो। जैन धर्म जातिवाद नहीं मानता। वह गुणपूजक रहा है। अगर आप लोगों (ब्राह्मण वर्ग को)! एतराज नहीं हो तो हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं – सिर्फ शर्त एक कि गोचरी दाता निरामिष भोजी हो ।'
कोई और साधु होता तो इस चुनौती भरे प्रश्न पर चुप्पी ही साध लेता ।
जवाहराचार्य जी म.सा. कोरे वाणीशूर नहीं थे वे कर्मवीर थे। उन्होंने जो कहा वह कर दिखाया। मानव मानव एक है। उनकी यही भावना आज फल रही है हरिजन वर्ग में म.प्र. में 'धर्मपाल प्रतिबोध क्रान्ति' के रूप में आचार्य नानेश की युगांतरकारी पहल पर ।
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