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संघ ऐक्यता के आदर्श
डॉ. सुभाष कोठारी
ज्योतिर्धर जैनाचार्य, युग-प्रवर्तक महान् क्रांतिकारी आचार्य थे। आपने दीक्षा अंगीकार करने के बाद वर्षों तक गहन अध्ययन, मनन, चिंतन एवं स्वाध्याय में अपना समय व्यतीत किया। जैसे आग में तप कर सोना कुन्दन हो जाता है वैसे ही ज्ञान रूपी अग्नि में तपकर आप अद्भुत ज्ञानी हो गये। आचार्य श्री श्रीलाल जी म.सा. ने सर्वगुण सम्पन्न देख कर आपको अपना उत्तराधिकारी बना दिया।
__ आप निर्भीक वक्ता, ओजस्वी प्रवचनकार, अद्भुत साहसी, अहिंसा एवं खादी प्रेमी, राष्ट्रभक्त, संघ एकता के पक्षधर, शास्त्रज्ञ, साहित्यप्रेमी, जिज्ञासु, अनुशासनप्रिय थे।
संघ एकता के पक्षधर –आचार्य जवाहर सदैव ही विविध जैन संघों के एकीकरण पर सदैव ही जोर देते रहे। उन्होंने शरीर को संघ की उपमा देते हुए कहा कि मस्तक में ज्ञान, भुजा में बल, पेट में पाचन शक्ति एवं जंघाओं में गतिशीलता हो तो कुछ भी कार्य असंभव नहीं हो सकता, उसी तरह यदि संघ में भी एकता हो, सगठन में सर्वस्व होम कर देने वाले यशस्वी लोग हों, संगठन के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करना पड़े तो भी पीछ हटन की भावना न हो तो संघ में चार चांद लग सकते हैं। संघ तो इतना महान है कि आवश्यकता पड़ने पर पद और अहंकार का मोह नहीं रखते हुए जो भी त्याग हो वह करने को तैयार रहना चाहिए।
संघ की एकता एवं अखंडता हेतु उनके दिये गये उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा -'समस्त संगठन के विकास के श्रेय में हम अपना श्रेय समझने लग जाएं और जहां तक मेरा प्रश्न है में ता इस पवित्र एवं महान् लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पद मर्यादा का भी त्याग करने को तैयार हूँ। संघ की सेवा में पारस्परिक भेद कदापि बाधक नहीं बनना चाहिए।'
ऐक्य भंग पाप है भगवान महावीर ने संघ एकता में बाधा उत्पन्न करना बहुत बड़ा पाप बताया है। संघ की शा। . एकता भंग करके अशांति एवं विघटन फैलाने वाला, संघ को छिन्न-भिन्न करने वाला दसवें प्रायश्चित का आप माना जाता है।
एकता के कुछ प्रेरक प्रसंग-१. आचार्य जवाहर का विक्रम संवत् १६८० का चातुमास हुआ। इस चातुर्मास में आपने श्री श्वे. स्थानकवासी जैन सकल श्री संघ की बम्बई की ओर से अपना यह १ प्रसारित किया। प्रत्येक समाज अपनी अपनी स्थिति को सुधारकर आगे बढ़ने का प्रयल कर रहा है। सा
धमार्गी
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