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________________ मुखवस्त्रिका | तूं श्रावका हुई सुगवाणी ॥ ३ ॥ सु. तूं धर्मकारण मुँह बांधे पिण नयां नयण तूं सांधेछे ! तू नचीती पति के खांधे छे ॥ ४ ॥ सु. 11 और कवि पुण्यविलास यतीजी ने " मानतुङ्ग मानवती” का रास बनाया उसकी ४८ वीं ढाल के ऊपर दोहे में कहा है [३१] 44 केइ भणे केइ अर्थ ले, केवांचे सूत्र सिद्धान्त । मुँहडे बांधी मुहपत्ती, मोटा साधु महन्त A 1 यह तो हुई मन्दिरमागियों के धर्म गुरुश्रों के मत की वान अब इस ही संप्रदाय के श्रावकों की कथा भी सुन लीजिए ܕ मुखस्त्रिका पर मन्दिरमार्गी श्रावकों की सम्मनिएँ मन्दिरमार्गी बान्धवों ! मुखवस्त्रिका को मुखपर बांधने के सम्बन्ध में हमने आपके माननीय सूत्रों, श्राग्रन्थों, और धर्म गुरुओं की वाणी को ही हाथ में रख कर सच्ची सच्ची विवेचना की है । और वह इसलिए कि, आपको जब अपने ही ग्रन्थ हमारी दलीलों को सच्ची वतारहे हैं तो ऐसी दशा में मुखवस्त्रिका को मुखपर बांधने को मानने में आपको सदेह ही क्या हो सकता है ! कुछ नहीं । अव मैं आप को यह बताने के लिये तैयार हूं कि, आपके श्रावक इस विषय मैं क्या कहते हैं ! देखिये ! ऋषभदासजी ने स्वनिर्मित ग्रन्थ " हित शिक्षाने रास " में इस प्रकार कहा है:" मोन करी मुख बांधिए आठ पड मुखकोशोरे " -
SR No.010521
Book TitleSachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarmuni
PublisherShivchand Nemichand Kotecha Shivpuri
Publication Year1931
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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