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________________ मुखवस्त्रका। [२१] ना है, तो मृगा नाम्नी रानी के मृगा लोड़ा नामक पुत्र है, उसे जाकर देखो ? उसके न हाथ है न पैर ? केवल पिन्ड मात्र है। और वह महान् दुःखी है । इस पर गौतम स्वामी उस लड़के को देखने के लिए पधारे। भगवान् गौतप का आगमन सुनते ही रानी मृगावती सामने आई । और गौतम स्वामी का स्वागत किया । आगमन का कारण जानने पर रानी ने कहा"भगवन् ? यदि आप उस लड़के को देखना चाहते हैं तो मुंह वांध लीजिए, उस के पास बड़ी दुर्गन्ध आती है" इस मुंह वाध लेने से रानी का अभिप्राय नाक पर कपड़ा लपेटने से है, न कि मुखवस्त्रिका वांधने से। इस में पाठक यह शंका करेंगे कि, यदि यही बात थी तो नाक बांधने के लिए क्यों नहीं कहा १ इसका यह उत्तर है कि, प्राय-दुर्गन्ध के स्थान पर लोग मुंह के श्राड़ा पल्ला देदो मुंह वांधलो ! ऐसा ही कहा करते हैं । अर्थात् प्रयोग में यही वाक्य श्राता है। और इस लिए रानी ने भी नाक बांधने के स्थान में मुंह वाधने के लिए कहाथा , मुख वत्रिका के लिए नहीं । भगवान् गौतम के मुख पर मुख वस्त्रिका तो प्रथम ही वन्धी हुइ थी । यदि ऐसा नहीं था तो हम तार्किकों से यों पूछते हैं कि, क्या, गन्ध, मुख ग्रहण करता है ? कभी नहीं? न्याय में लिखा है 'प्राण ग्राह्या गुणागन्ध' अर्थात घ्राणन्द्रिय (नाक ) से गन्ध की पहचान होती है । इसको तो मन्दिर मार्गीय महानुभाव भी मानते हैं कि, रानी ने बोलने के लिए नहीं किन्तु दुर्गन्ध की रक्षा के लिए मुंह वान्धने को कहा था। और दुर्गन्ध का वचाव नाक बाधने से ही हो सकता है। ऐसी दशा में रानी ने नाक न कह कर प्रचलित शब्दों का प्रयोग
SR No.010521
Book TitleSachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarmuni
PublisherShivchand Nemichand Kotecha Shivpuri
Publication Year1931
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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