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________________ मुर वस्त्रका | [ १६ ] जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छई २ ता चउ पड़लेण वत्थे मुहं बंधेई २ त्ता भगव गोयम एवं वयासि तुझे भंते मुहपोतियाए मुहं वंधइ ॥ इसका यह अर्थ है कि, जिस ओर भूमि घर था उस र मृगावती ने श्राकर चार पड़ के वस्त्र से मुख बांधा । और भगवान् गौतम स्वामी को भी कहा कि, आप भी मुहपोत्तिया से मुख बांधले । सो यदि मुंह बंधा हुआ होता तो गोतम स्वामी से रानी पुनः मुंह बांधनेका प्रस्ताव क्यों करती ? । ठीक है ? रानी ने गौतम स्वामी को ऐसा ही कहा था, इस को हम भी मानते हैं परन्तु रानी का अभिप्राय उस कथन से मुखवस्त्रिका बान्धनेका कदापि नहीं था । वे यदि इस में पूर्वापर सम्बन्धयि सारे सूत्र को बताते तो पाठक उन्ही से समझ जाते । और मेरे उत्तर देने की भी श्रावश्यकता नहीं रहती । परन्तु केवल एक ही सूत्र का श्रंश अपनी दलील में रखकर अनजान भाईयों को भ्रम मे डालने की कोशिश की गई है । यह एक पेसा प्रयत्न है, जैसाकि पुनर्विवाह के सम्बन्ध में आर्य समाजी भाईयों ने सनातन धर्मी बन्धुओं को मनुस्मृतिके कतिपय लोकों का प्रमाण देकर भ्रममें डालने का किया था। परन्तु जिन श्लोकों में मृत भर्त्ताओं का पुनर्विवाह करना लिखा है उनसे श्रागे के श्लोकों में ही वर्णन है कि, "यह पुनर्विवाह की प्रथा महाराज वेणु ने प्रचलित की थी परन्तु यह वुरी प्रथा थी एतदर्थ इसको कदी गई और आगे भी इसके जारी रखने की आवश्यकता नहीं है' । श्रव कहिए यदि किसी को मनुस्मृतिका ज्ञान न हो और आगे के लोक न पढ़े तो वह भ्रम में पड़ेगा या
SR No.010521
Book TitleSachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarmuni
PublisherShivchand Nemichand Kotecha Shivpuri
Publication Year1931
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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