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________________ [१६] मुखवास्त्रका। से हाथ में रखलो हागा वही वात पकड़ा गई और उसी पर आज सारे श्वताम्वरी मन्दिर मार्गी साधु व श्रावक उतर पड़े है । परन्तु उन्हें यह पता नहीं है कि, उन लोगों में पहिले मुख वस्त्रिका मुंहके ही ऊपर बांधी जाती थी। हाथ में नहीं रक्खी जाती थी। अन्ध परंपरा और महजव के नाम पर ना समझलोगों ने कितने ही हत्या काण्ड करडाले है । परंपरा क्या पदार्थ है ? महजव प्रया चीज है ? इसका समझना सामान्य पुरुषों का काम नहीं है। अधिकाश मनुष्य नारकीय यातना के भय से ही किसी काम को नहीं करते और स्वर्गीय सुखों की लालसा से ही किसी कार्य को सम्पादन करते है। परन्तु उन्हें वास्तविक भान नहीं होता है । वे अच्छा समझकर किसी काम को करते हो और वुरा समझकर छोड़ देते हो सो बात नहीं। नरक का भय और स्वर्ग की लाससा ही उनके कर्तव्य की कुंजी है। परन्तु मानव धर्म वड़ों के नाम पर विकने की सलाह कभी भी नहीं देता। बड़े बुरा काम कर जाएँ तो छोटों का यह काम कदापि नहीं है कि, वे भी वैसा ही करें। यद्यपि उन्होने भ्रम में पड़कर कुछ दिन वैसा कर भी लिया हो तथा पि अव तो उनको उन्ह कुरूड़िया से परहेज करना चाहिए। वित होजाने पर भी पहलवान ताल ठोकता रहे और पहलवानी का लंगर पहन रहे तो यह उसकी धृष्टता नहीं तो और क्या है । मनुष्यत्व तो इसी में है कि, अपनी भूलों का सुधार करले । मुखवस्त्रिका को पहले किसी ने भूलकर हाथमें रखली और मुंह पर नही बांधी तो क्या जरूरत है कि, हम भी वैसा ही करे। मसलन मशहर है कि, किसी स्थान पर कुत्ते के काम फड़ फड़ाने से उसका गलूड़े ( काट विशेष ) उछल कर
SR No.010521
Book TitleSachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarmuni
PublisherShivchand Nemichand Kotecha Shivpuri
Publication Year1931
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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