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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
वह महापुण्य का भागी होता है और स्वयं गुणों को प्राप्त करता है। (२२) प्रतिषिद्ध देश काल में न जाना - जिस देश और जिसकाल में जाने के लिये मना है उस देश और उस काल में गृहस्थको न जाना चाहिये । जाने से धर्म में बाधा हो सकती है, अनेक. तरह के कष्ट और चोर आदि के उपद्रव हो सकते हैं ।
(२३) बलाबल का ज्ञान - गृहस्थ को अपनी और पराये की शक्ति तथा द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा अपना पराया सामर्थ्य देखना चाहिये | इसी तरह उसे शक्ति और सामर्थ्य की न्यूनता. पर भी विचार कर लेना चाहिये । उक्त प्रकार से शक्ति, सामर्थ्य पर विचार कर जो कार्य किया जाता है उसमें सफलता मिलती है औरकर्त्ता का उत्तरोत्तर उत्साह बढ़ता है। इसका विचार किये बिना कार्य करने से सफलता नहीं मिलती । कर्त्ता का परिश्रम व्यर्थ जाता' है, उसे दुःख होता है और लोग भी उसका उपहास करते हैं ।
(२४) वृत्तस्थ ज्ञानवृद्धों की पूजा-अनाचार का त्याग करने वाले और आचार का सम्यक् रूप से पालन करने वाले महात्मा वृत्तस्य कहलाते हैं । गृहस्थ को वृत्तस्थ, ज्ञानी और अनुभवी पुरुषोंकी विनय भक्ति और सेवा करनी चाहिये । इनके सदुपदेश से आत्मा का सुधार होता है एवं ज्ञान और क्रिया की वृद्धि होती है ।
(२५) पोप्य पोषक - जिनका भरण पोषण करना गृहस्थ के लिये आवश्यक है वे पोप्य कहलाते हैं जैसे - माता, पिता, स्त्री, संतान, श्राश्रितजन (सगे सम्बन्धी, नौकर चाकर आदि) । गृहस्थ कोइनका पोषण करना चाहिये । उसे चाहिये कि वह उन्हें यथासम्भव इष्ट वस्तु की प्राप्ति करावे और हर तरह उनकी रक्षा करे ।
(२६) दीर्घदर्शी - दीर्घ काल में होने वाले अर्थ और अनर्थ का पहले से ही विचार कर कार्य करने वाला पुरुष दीर्घदर्शी, कहलाता है । बिना विचारे काम करने से अनेक दोष होते हैं ।
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