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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
करने वाला (३) दूसरों के मर्म प्रगट न करने वाला (४) सदाचारी (५) व्रतों का निरतिचार पालन करने वाला (६) लोलुपता रहित (७) क्रोध न करने वाला तथा (८) सत्य का अनुरागी ।
(६) आगे कहे जाने वाले चौदह स्थानों में रहा हुआ संयती विनीत कहा जाता है । वह कभी मुक्ति का अधिकारी नहीं होता । ( ७-६ ) - ( १ ) बार बार क्रोध करने वाला (२) चिकथा करने वाला अथवा दीर्घकाल तक क्रोध रखने वाला (३) मित्रता करके उसका त्याग करने वाला अथवा कृतघ्न होकर मित्र का उपकार न मानने वाला ( ४ ) शास्त्र पढ़ कर अभिमान करने वाला (५) समिति आदि में स्खलना होने से आचार्यादि का तिरस्कार करने वाला (६) मित्रों पर भी क्रोध करने वाला (७) अतिशय प्रिय मित्र की भी पीठ पीछे बुराई करने वाला (८) सम्बद्ध भाषण करने वाला (8) द्वेप करने वाला (१०) अभिमानी (११) रसादि
गृद्ध रहने वाला (१२) इन्द्रियों का निग्रह न करने वाला (१३) आहारादि पाकर साथियों को नहीं देने वाला (१४) अपने व्यवहार द्वारा सभी में प्रीति उत्पन्न करने वाला । इन दोपों वाला व्यक्ति अविनीत कहा जाता है ।
(१० - १३) पन्द्रह गुणों को धारण करने वाला पुरुष विनीत कहलाता है - ( १ ) विनम्र वृत्ति वाला (२) अचपल - गति, स्थान, भाषा और भाव विषयक चपलता रहित (३) माया रहित (४) खेल तमाशा आदि देखने की उत्सुकता से रहित (५) किसी का तिरस्कार न करने वाला (६) विकथा का त्याग करने वाला (७) मित्रता करके उसे निभाने वाला, मित्र का उपकार करने वाला एवं उसके प्रति कृतज्ञ रहने वाला (८) शास्त्र पढ़ कर अभिमान न करने वाला (६) समिति आदि में स्खलना होने पर श्राचायदि का तिरस्कार न करने वाला (१०) मित्रों पर क्रोध न करने